________________
ध्यान विचार
श्रावक का कर्तव्य है कि प्रातः काल में या चार घड़ी शेष रात्रि रहे निद्रा त्याग कर नमस्कार मन्त्र का जाप करे, यह मन्त्र कल्याण का करने वाला और मन वांछित फल देने वाला है। । इसका विधान बताते हुवे "व्यवहार भाष्य" सूत्र में लिखा है कि
शैया में कुस्वप्न राग युक्त पाया हो या प्रद्वषादिमय अनिष्ट फल का सूचक हो उसको दूर करने के लिये शैय्या से उठते ही १०८ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करे। या १०० उच्छवास करे । जिन्हें श्वासोश्वास पर काउसग्ग करने का अभ्यास नहीं है उन्हें चार लोगस्स का काउसग्ग करना चाहिये और श्वासोश्वास से कायोत्सर्ग करने का अभ्यास नित्य प्रति करते रहना ।
शैया में बैठे-बैठे जो स्मरण करते हैं उन्हें चाहिये कि मन में ही पञ्च परमेष्टि का ध्यान किया करे । वचन उच्चार करके जो जाप करते हैं, उन्हें शैय्या त्याग कर शरीर शुद्धि किये बाद भूमि पर
आसन बिछा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख रखकर नमस्कार मंत्र का ध्यान करने बैठे। जो कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े-खड़े ध्यान करना चाहें उनको व बैठे-बैठे ध्यान करें उनको चाहिये कि एकाग्रता के हेतु कमल (नेत्र) बंधकर जपादि करें। मन को साफ रखे ममता-माया का त्याग करे समभाव प्रालम्बित हो विषयादि शत्रों से विराम पाकर समपरिणामी हो ध्यान करना चाहिये । जिनको समभाव गुरण प्राप्त नहीं हुवा है उनको ध्यान करने में अनेक प्रकार की विडम्बनायें उपस्थित हो जाती हैं । अतः समपरिणामी होने का अभ्यास करना चाहिये क्योंकि समपरिणाम बिना ध्यान नहीं होता और बिना ध्यान के निष्कम्प-समता नहीं आ सकती
Scanned by CamScanner