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( २६ ) के मध्य में शोभायमान तीन लोक में अचिन्तय महात्म्य वाले तेजोमय की तरह अद्भुत एसे इस "ह्रीं" कार का ध्यान किया जाय तो एकाग्रता से लय लगाने वाले को वचन और मन का मेल दूर करने पर श्रुत ज्ञान का प्रकाश होता है।
इस प्रकार के महीने तक अभ्यास करने वाला निज के मुख में से निकलती हुई धूम्र की शिखा को देखता है। इसी तरह एक वर्ष तक अभ्यास किया जाय तो मुख में से निकलती ज्वाला देखता है और ज्वाला देखने के बाद संवेगवान होकर सर्वज्ञ सच्चिदानन्द परमात्मा का मुख कमल देखता है। इतना देखने के बाद सतत् अभ्यास करते करते अत्यन्त महात्मय वाले कल्याणकारी अतिशय युक्त भामण्डल के मध्य में विराजित साक्षात सर्वज्ञ भगवान को देखता है। और उन सर्वज्ञ के विषेमन स्थिर कर निश्चययुक्त लय लगाता रहे तो परिणाम की धारा ऐसी चढ जाती है कि उसके निकट वृति शिव सुख-अर्थात् मोक्ष उपस्थित हो जाती है, और वह परम पद प्राप्त करता है।
ह्रीं की महिमा अपरम्पार है। इसमें ऋषिमण्डल में कहे अनुसार वर्णवार चौबीस जिनकी स्थापना होती है। जो ध्यान करने वालों के लिए आलम्बन में उत्तम है। ह्रीं में अत्यन्त शक्ति का समावेश है। ह्रीं को लिखकर कैंची से कुछ पांच या सात टुकड़े बना लिये जायं तो उन टुकड़ों में स्वर व्यन्जन का समावेश होता है अर्थात् उन पांच या सात विभागों में स्वर व्यन्जन के सर्व अक्षर की योजना हो जाती। तथापि ह्रीं का जाप करने के लिये दो प्रकार के ह्रीं वृत हाथ के पन्जे में बताये गये हैं, उनका उपयोग अवश्य करना चाहिये।
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