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होती है। दिगंबर मत अनुसार तीर्थंकरों की माता को आनेवाले 16 स्वप्न में एक स्वप्न सिंहासन है। सिंहासन चौरस या लंबचौरस ही बनाना चाहिए, गोल या अष्टकोण नहीं। बहुत सारे जिनालयों में धातुप्रतिमा को प्रक्षाल आदि के लिए जो छोटी अलंकृत चौकी देखते हैं, उसे भद्रासन बोल सकते है। उसे छत्र भी करते हैं। आगमो में अनेक स्थानों पर विशिष्ट सुंदर रचना वाले भद्रासनों का वर्णन किया गया है। परम पवित्र श्री कल्पसूत्र में स्वप्नलक्षण पाठको फलादेश कहने के लिए राजसभा में पधारतें हैं, तब सिद्धार्थ राजा त्रिशलादेवी के लिए सुंदर भद्रासन वहां पर रखवाते है इसका वर्णन है। ऐसे ही चौथे लक्ष्मीदेवी के स्वप्न में भी सेंकडों भद्रासनों की बात की गई है।
O)6. पूर्ण कलश
6.1
हे प्रभु ! तीनो भुवन में और स्वकुल में भी आप पूर्ण कलश के समान उत्तमोत्तम हो, इसलिए आपके आगे पूर्ण कलश आलेखित किया जाता है।
अष्टमंगल का छट्ठा मंगल है कलश: प्रभु की माता को आये हुए 14 स्वप्न में नौवाँ स्वप्न पूर्ण कलश है। तथा उन्नीसवें श्री मल्लिनाथ भगवान का लांछन भी कलश-कुंभ ही है। शुद्ध निर्मल जल भरा हुआ पूर्ण कलश विशेष adiahin रूप से मांगलिक गिना गया है। जल के साथ उसका साहचर्य होने के कारण यह मंगल जल तत्व संबंधित भी मान सकते है। प्रत्येक धर्म-संप्रदाय में देवस्नान के लिए पूजा की सामग्री में कलश जरूर होगा ही। अनेक मंगल विधिओं का प्रारंभ जलभृत्-कलश से होता है। जलपूर्ण कलश में लक्ष्मी का वास माना गया है। जिसकी हीरा-रत्नजडित कमलाकार बैठक-ईंडुरी(ईंढोणी) हो,
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