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ऊदर के भाग पर विविध मांगलिक चिह्न-आकृति का आलेखन किया गया हो, कंठ पर पुष्पमाला धारण की गई हो, आसोपालव वृक्ष के 5-7 पर्ण रख कर श्रीफल स्थापित किया गया हो ऐसा शुद्ध निर्मल जल से भरा, सोना-चाँदी-ताम्र या मिट्टी का कलश
अथवा उसकी आकृति, पूर्ण कलशस्वरुप में जानें। 6.2 विविध शास्त्रों में मंगल कलश:
अनेक जैनागमो में राज्याभिषेक या दीक्षा के समय स्नान अवसर पर सुवर्ण, चाँदी आदि अनेक प्रकार के मांगलिक कलश का उल्लेख देखने को मिलता है। । श्री तीर्थंकरदेवो के जन्मकल्याणक उत्सव अवसर पर देवताएं सुवर्ण इत्यादि आठ जाति के प्रत्येक हजार कलश द्वारा कुल 1 करोड़, 60 लाख बार बाल प्रभु का अभिषेक करते है। इन कलशों के योजन का नाप हमें आश्चर्यचकित कर देने वाला है। शांतिस्नात्र या अंजनशलाका जैसे महत्व के विधानों में सब से
पहली विधि कुंभ स्थापन की होती है। 6.3 शिल्पकला में कलश:
जिनालयों में परिकर में जिनप्रतिमा के छत्र पर जन्मकल्याणक का शिल्प होता है, जिस में हाथ में कलश धारण किये गए देव होते है। मंदिर में शिखर की चोटी पर आमलसारा की उपर मंगल कलश की स्थापना की जाती है। कुछ शिखरों की रचना में शिखर के चार कोने
हस्तप्रतो में कलश पर सीधी लाइन में क्रमसर कलश का शिल्प किया जाता है, जिसे 'घटपल्लव'कहा जाता है। मंदिर के स्तंभों में भी ऐसी ही रचना होती है।