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शरावसंपुट । मिट्टी के कोडिय पर दूसरा कोडिय उलटा रखने से शरावसंपुट बनता है। जिसमें नीचे के कोडिय में रखी चीज़ सुरक्षित बनती है। देवलोक के सिद्धायतनो में शाश्वत जिनप्रतिमा के आगे स्थायी जिनपूजा के उपकरणों में वर्धमानक भी होता है। पूजा संबंधित सुगंधि चूर्ण आदि द्रव्य रखने में
उनका उपयोग होता है। 4.2 व्यवहार में वर्धमानक:
उपर और नीचेका कोडिय सरक न जाय, इसलिए उसे नाडाछड़ी से बांध कर उपयोग में लिया जाता है। जिनबिंब का जिनालय या गृहप्रवेश में, दीक्षार्थी के गृहत्याग में, नववधू के गृहप्रवेश में शरावसंपुट को देहली पर रख कर उसे तोड़ कर प्रवेश किया जाता है। अंजनशलाका विधान में भी शरावसंपुट का प्रयोग होता है।
0) 5. भद्रासन (७
हे प्रभु ! देव-देवेन्द्रो द्वारा पूजित और अचिंत्यशक्ति-प्रभाव संपन्न आप के चरणों के अत्यंत निकट स्थित भद्रासन, आपके गुणों के आलंबन से सर्व के लिए कल्याणकारी होने से, आपके
आगे आलेखित करतें हैं। 5.1 अष्टमंगल का पाँचवां मंगल है भद्रासन।
भद्र यानी कल्याणकारी, मनोहर, देखते ही पसंद आ जाएं इतना सुंदर; आसन अर्थात् बैठने का स्थान-पीठिका। श्रेष्ठ सुखकारी सिंहासन को भद्रासन कहा जाता है। भद्राय लोकहिताय आसनम् - भद्रासनम्। लोककल्याण हेतु बनाया गया राजा का आसन यानी भद्रासन। तीर्थंकर भगवंतो के अष्टप्रातिहार्य में भी सिंहासन की गणना
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