________________ अहो! अद्भुत अद्भुत ये आप्तवाणियाँ इन सब आप्तवाणियों में बुद्धि रहित वाणी निकली है। उसी में से ये लिखी गई हैं। यानी कि यह जो टेपरिकॉर्ड की वाणी निकली है न, वह मालिकी रहित वाणी है। यह वीतराग वाणी कहलाती है! ये पुस्तकें पढ़कर लोग कहते हैं कि ये वीतरागी बातें हैं सारी, इन दादा की।अहो! ऐसी अद्भुत पुस्तकें!' ऐसा कई लोगों को समझ में आ गया है। पढ़ने वाले इसकी अलौकिकता पर आफरीन रहा करते हैं। हमारे एक-एक शब्द में अनंत-अनंत शास्त्र रहे हुए हैं! इसे समझे और सीधा चले तो काम ही निकाल देगा। एकावतारी हुआ जा सके, ऐसा है यह विज्ञान! लाखों जन्म कम हो जाएंगे। इस विज्ञान से तो राग भी खत्म हो जाता है व द्वेष भी खत्म हो जाता है और वीतराग बन जाते हैं। अगुरु-लघु स्वभाव वाले बन जाते हैं। अतः इस विज्ञान का जितना लाभ उठाया जा सके, उतना कम है। - दादाश्री आत्मविज्ञानी ‘ए. एम. पटेल' के भीतर प्रकट हुए दादा भगवानना असीम जय जयकार हो ISBN 978-93-86321-800 9-789386-321800 Printed in India Price 120 dadabhagwan.org