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________________ ४०४ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) जान सके, वह मुश्किल है। मैंने ज्ञान दिया है इसलिए जानने लगे हैं कि खुद कौन है ? बावा तो वह जानता ही नहीं है न! यदि आप 'मैं' हो, तो बावा की सभी भूलें देख सकते हो लेकिन अभी भी कितनी ही बार बावा बन जाते हो न! इस प्रकार पोतापणुं रखवाता है 'वह' प्रश्नकर्ता : जिसमें यह पोतापणुं (मैं हूँ और मेरा है ऐसा आरोपण) है और जो कहता है कि 'यह मैं हूँ', और फिर ऐसा भी कहता है कि 'मैं चंदूभाई हूँ' और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और फिर वह जो रक्षण करता है, वे सब कौन हैं ? वास्तव में कौन है वह ? दादाश्री : नहीं, नहीं। कोई है ही नहीं। यह तो ज्ञान है जो यह कहता है 'मैं शुद्धात्मा हूँ' और अब जो उस तरफ का पक्ष लेता है, वह अज्ञान है। जो पोतापणुं रखवाता है, वह अज्ञान है। प्रश्नकर्ता : कौन रखवाता है वह पोतापणुं? दादाश्री : वह नासमझी है। अभी तक अहंकार उतना नहीं टूटा है। उल्टी समझ है। अभी भी यह छूट नहीं रही है। प्रश्नकर्ता : अहंकार किसे है? वह कौन है? दादाश्री : जो यह कहता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ, वह शुद्धात्मा ही है, वह ज्ञान ही है और जो उल्टा करता है, वह अज्ञान है। अज्ञान अर्थात् बुद्धि और अहंकार अर्थात् 'मैं चंदूभाई हूँ', वही। प्रश्नकर्ता : क्या उसी को आप बावा कहते हैं ? दादाश्री : चंदूभाई का ही न ! 'मैं चंदूभाई हूँ', कहे तो वह अभी तक खुद के पक्ष में है, 'उसे' 'मैं शुद्धात्मा हूँ' बनना है। शुद्धात्मा बन गए हो, तो भी चंदूभाई का पक्ष नहीं छोड़ते। जब तक चंदूभाई का पक्ष नहीं छोड़ोगे, तब तक वह कच्चा रहेगा। प्रश्नकर्ता : वह बावा है?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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