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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' है कि सबकुछ करता है और जानता भी है, तब तक बावा है और जो सिर्फ जानता है, वह आत्मा है। जानने वाला मूलतः आत्मा ही है। प्रश्नकर्ता : कौन सा आत्मा जानता है? दादाश्री : जानने वाला आत्मा, शुद्धात्मा। मूल आत्मा तो जो भगवान हैं, वही हैं। प्रश्नकर्ता : बावा और मंगलदास, क्या शुद्धात्मा उन दोनों का ज्ञाता-दृष्टा ही रहता है ? दादाश्री : दोनों का क्या? दोनों के अंदर जितने भाग हैं, उन सभी को देखता व जानता है। प्रश्नकर्ता : क्या बावा सिर्फ मंगलदास का ही ज्ञाता-दृष्टा रहता है? दादाश्री : बावा तो ज्ञाता-दृष्टा रहता ही नहीं है। ज्ञाता-दृष्टा तो शुद्धात्मा ही है। उसके अलावा अन्य कोई ज्ञाता-दृष्टा है ही नहीं। इसमें भी सबकुछ देखता है। ये सभी चीजें, जो आँखों से दिखाई देती हैं. वे सभी शुद्धात्मा की वजह से दिखाई देती हैं। वर्ना, बावा में तो ऐसा कुछ है ही नहीं, शक्ति ही नहीं है न! बावा तो अंधा है (ऐसा समझना है कि बावा मात्र मानता है कि मैं देखता हूँ और जानता हूँ अतः इस प्रकार से वह देखने व जानने वाला (ज्ञाता-दृष्टा) बनता है। वास्तव में तो मूल आत्मा ही देखने व जानने वाला है और कर्ता साइन्टिफिक सरकमस्टेन्श्यिल एविडेन्स है। जब मंगलदास साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल के आधार पर करता है, तब बावा मानता है कि मैं कर रहा हूँ। इस प्रकार बावा कर्ता और ज्ञाता दोनों ही बनता है, मान्यता के आधार पर।) __मैं, बावा और मंगलदास, तीन बातें समझ जाए तो सब समझ में आ जाएगा कि मंगलदास कौन है ? मैं कौन हूँ और बावा कौन है? अब मंगलदास तो दीये जैसी साफ-साफ बात है। जो बाहर दिखाई देता है, वह कौन है? तो वह है मंगलदास। जिसकी हड्डियाँ दिखाई देती हैं वह कौन है ? तो वह है मंगलदास। जो दिखाई नहीं देता, वह बावा है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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