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________________ ३९८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) तरह से होगा? सम्यक् ज्ञान का मतलब क्या है? सम्यक् दर्शन अर्थात् ऐसी श्रद्धा बैठना कि मैं इन सभी सर्कल्स के बाहर हूँ! _अतः यदि लोगों को और संतों से पूछे, 'इसमें भगवान क्या करते हैं?' तो वे सभी को समझाते हैं कि 'भगवान इन लोगों का भला करते हैं'। जो ऐसा समझाता है, वह भी चेतन नहीं है। वह तो सर्कल है। जो समझाने वाले को भी जानता है, 'मैं तीर्थंकर हूँ' 'जो' ऐसा जानता है, वह 'आत्मा' है। ये जो तीर्थंकर हैं, वे आत्मा नहीं हैं! यह बात की किसने? चेतन ने नहीं, वह भी बावा ने की है और सुनने वाला भी बावा है। सर्कल वाला बावा, किसी एक खास सर्कल तक पहुँचने पर उसे पता चलता है कि यहाँ से समुद्र नज़दीक होना चाहिए। जब उसे ऐसा पता चलता है कि 'अब हम सर्कल से बाहर की लेक में आ गए हैं', तब उसे समकित कहते हैं और तब यह श्रद्धा बैठ जाती है। फिर जैसे-जैसे नज़दीक जाते हैं वैसे-वैसे उसे उसका 'ज्ञान' होता जाता है कि वास्तव में यही है। यह सर्कल से बाहर है। अतः जिसका कोई विशेषण नहीं होता, वहाँ पर मूल 'मैं' है ! 'मैं शुद्धात्मा हूँ', ऐसा भी विशेषण नहीं है। अभी तो यह शुद्धात्मा भी विशेषण है, आत्मा का शुद्ध स्वरूप! उससे भी आगे जाना है लेकिन यदि शुद्धात्मा बन गए तो भी बहुत हो गया। जो 345 डिग्री से आगे गया उसे ऐसा नहीं कहना पड़ता कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। उसके बाद आगे जाना है ! __ बावा स्वरूप की शुरुआत कहाँ से होती है? जो आत्मा के सम्मुख हो गए हैं, जीवात्मा की दशा से निकलकर आत्म सम्मुख हो गए हैं, वे लोग बावा स्वरूप में आते हैं। इसीलिए उसके बाद वे एब्सल्यूट तक जाते हैं। अतः यह बीच वाला... बावा की स्थिति यह है। प्रश्नकर्ता : बावा जान नहीं सकता? दादाश्री : वह 'जानने वाला' ही है, वह जानता ज़रूर है लेकिन यह 'जानने वाला' बावा है कि 'यह आत्मा जानता है'। अगर (ऐसा कहें कि) बावा जानता है तो फिर आत्मा रह जाएगा। जब तक ऐसा मिक्स्चर
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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