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________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास ' प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : फिर वापस हैं एक के एक ही कि मैं, बावा, मंगलदास । मंगलदास, वह ‘चंदूभाई' नामधारी है और यह जो सांसारिक है, वह बावा है और आत्मा, ‘मैं' है! मैं शुद्धात्मा हूँ और ये सब बावा। ‘इसने मुझे गाली दी', तो गाली देने वाला भी बावा और गाली सुनने वाला भी बावा। ये सब खेल, सभी तरह-तरह के रोमान्स । वह बावा है और 'चंदूभाई' मंगलदास है। बावा अर्थात् जो खेल करता है । जहाँ जाए वहाँ पर खेल तो रहता ही है न ? प्रश्नकर्ता : ये सारे खेल बावा ही करवाता है ? दादाश्री : हाँ बावा करवाता है । प्रश्नकर्ता : और जब वही बावा कहता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो वापस शुद्धात्मा भी बन जाता है I दादाश्री : हाँ। बन जाता है । प्रश्नकर्ता : 'आत्मा ऐसा है कि जैसा चिंतवन करता है वैसा ही बन जाता है।' तो क्या वह बात इस बावा की है ? बावा वैसा बन जाता है ? ३९३ दादाश्री : हाँ। खुद जैसा चित्रण करता है, जैसे अगर कहे ‘हमें रोमान्स ही करना है' तो वैसा ही बन जाता है । 'हमें मोक्ष में जाना है' तो वैसा बन जाता है। तय करना चाहिए। तूने क्या तय किया है ? प्रश्नकर्ता : मोक्ष में जाना है। दादाश्री : अब बावा किस भाग को कहते हैं, वह समझ गए न आप? ये साठ साल की, अस्सी साल की, नब्बे साल की, यह सत्तर साल की, बूढ़ी, पढ़ी-लिखी, अनपढ़, विधवा, विवाहित, वह सब बावा में जाता है। जो बेकार है, बरकत नहीं है, वह सब बावा में । बरकत वाला है, वह भी बावा में। सबकुछ बावा । जिसकी अवस्था बदलती रहती है, वह सब बावा है । ठेठ तक, मोक्ष में जाने तक, मैं, बावा और I
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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