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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
हूँ। मंगलदास नामधारी है, वह इस संसार व्यवहार को चलाता है। खाता है, पीता है, सोता है, उठता है, घूमता-फिरता है।
___बावा अर्थात् चाहे कोई भी हो, स्टोर वाला या किसान या नौकर या पुलिस वाला या जो व्यापार करता है वह। फिर अंदर जो उल्टा-सुल्टा करता है, पिछला डिस्चार्ज करता है और नया चार्ज करता है। यह जो चार्ज और डिस्चार्ज करता रहता है, वह बावा है।
अतः 'मैं, बावा और मंगलदास' है यह जगत्। सभी कहते हैं, 'मैं बावा मंगलदास'। अरे लेकिन भाई, वास्तव में तू कौन है ? तू क्यों बावा कहलाता है उसका कोई कारण होगा न? कोई कहेगा कि किसान है। 'अरे भाई, किसान क्यों है लेकिन?' तब कहता है, 'मेरी ज़मीन है, बैल हैं, इसलिए किसान हूँ'। और यह जो फौजदार है, वह किसान नहीं कहलाता और जो फौजदारी करता है, वह बावा है। यह उदाहरण अप्रोपिएट (उचित) है?
प्रश्नकर्ता : एक्जेक्ट (यथार्थ) है दादा।
दादाश्री : यह जो शरीर है, वह अंबालाल है। बावा कौन है ? यह वही है जो ज्ञानी है और मैं कौन? आत्मा! अतः ये ज्ञानी बावा ही कहलाएँगे न ! मैं बावा मंगलदास! कोई कहे, 'अरे तीनों एक ही'। तब कहेंगे, 'एक ही'। देखो ये तीनों एक साथ हैं न! कहते हैं न! मैं चंदूभाई लोहा बाज़ार वाला'। 'तू एक ही है या आप दोनों अलग हो?' अलग नहीं समझते! वह खाने वाला मंगलदास है। खुद और वह, दोनों अलग हैं लेकिन भान ही नहीं है न! हम कैसे एक शब्द पर से तीन लोगों को समझ गए। मैं, बावा और मंगलदास। बावा अर्थात् उसका कामकाज, यह जो डिज़ाइन है, वह मंगलदास है।
ये सभी खेल किसके हैं? जो संसार की खटपट करता है या फिर जो मोक्ष की खटपट करता है वह बावा है। लेकिन वह बावा है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। समझ में आए ऐसी बात है न?