________________
[७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास'
३८९
तब छवि भी दिखाई देती है। दिखाई देती है या नहीं दिखाई देती? इसलिए जब ऐसा कहा जाए कि 'मैं, बावा और मंगलदास' तब जाकर पहचानता है वह। नहीं तो, वह पहचानेगा कैसे? दरवाज़ा ही नहीं खोलेगा न! उसे खुद को पता चलना चाहिए न, कि कौन है यह? उसी प्रकार अगर इस 'मैं' को पहचान लिया जाए न तो हल आ जाएगा। उसी प्रकार से इसमें जो 'मैं' है, वह 'आत्मा' है, यह 'चंदूभाई' मंगलदास है और 'बावा' अंतरात्मा है। आपको समझ में आया ना? ____ तो 'मैं चंदूभाई हूँ, मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा, इस देह भाग को आप कहते थे चंदूभाई। आप किस प्रकार से चंदूभाई हो? क्या चंदूभाई आपका नाम नहीं है? तब आप कहोगे, 'मेरा नाम है'। 'वह तो भाई, तेरा नाम अलग और तू अलग नहीं है?' अलग ही है!
प्रश्नकर्ता : तो ये ए. एम. पटेल, ये मंगलदास हैं ?
दादाश्री : सिर्फ ए. एम. पटेल ही नहीं, लेकिन जितना भी सब डॉक्टर देख सकते हैं, काट-काटकर बारीक से बारीक जो कुछ भी देख सकते हैं, वह पूरा मंगलदास है। इतना सब मंगलदास में आता है। डॉक्टर दो प्रकार के होते हैं न, एक तो काटने वाले और दूसरे...
प्रश्नकर्ता : फिजिशियन।
दादाश्री : हाँ, अतः इस शरीर में जो फिज़िकल भाग है, वह पूरा मंगलदास है। मंगलदास के ताबे में कितना है? तो कहते हैं, इतना फिज़िकल (भौतिक) और फिर वह भी अपने ताबे में नहीं है। अतः उसका समभाव से निकाल करना है। उसकी क्या स्थिति होगी', वह सब व्यवस्थित है। अतः आपको व्यवस्थित समझकर समभाव से निकाल करना है!
जो बदलता है, वह है 'बावा' चंदूभाई को तू क्या कहेगा? तब कहता है, 'वह चंदूभाई मैं हूँ'। तब यदि हम पूछे, 'क्या उस बच्चे के पापा नहीं हो?' तब कहता है,