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________________ [7] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' पहचान, 'मैं, बावा और मंगलदास' की प्रश्नकर्ता : यहाँ ज़रा कन्फ्यूज़न हो गया है कि 360 डिग्री वाले दादा भगवान हैं और 356 डिग्री पर अंबालाल? दादाश्री : हाँ, वह बताता हूँ। वह कन्फ्यूज़न निकाल दो। दादा भगवान 360, जो मूल भगवान हैं, वह 'मैं' है। हम एक उदाहरण लेते हैं। रात को बारह बजे कोई आकर बाहर से दरवाज़ा खटखटाता है। तब हम पूछे कि 'अरे भाई, अभी कौन आया है रात के बारह बजे?' तब वह कहता है, 'मैं हूँ'। हम फिर से पूछे, 'कौन हो भाई, बताओ न?' तब कहता है, 'मैं हूँ, मैं ! मुझे नहीं पहचाना?' बल्कि ऐसा कहता है। तब पूछे, 'नहीं भाई, मुझे समझ में नहीं आया। कौन है ?' तब कहता है, 'मैं बावा'। 'बावा (संन्यासी) लेकिन पाँच-सात संन्यासी मेरे परिचित हैं, तुम कौन से बावा हो, मुझे समझ में आना चाहिए ना?! हाँ, लेकिन बावा अर्थात् कौन है तू?' तब कहता है 'मैं हूँ बावा मंगलदास'। तब वह पहचानता है। 'मैं' जब सिर्फ 'मैं' कहता है तो नहीं पहचानता। 'मैं बावा हूँ' कहता है, तब लगता है, 'यह वाला बावा आया या वह वाला बावा आया?' बावे तो चार-पाँच हैं। तब कहता है, 'मैं, बावा मंगलदास'। और मंगलदास दो-तीन हों तब ऐसे कहना पड़ेगा 'मैं मंगलदास, महादेव जी वाला'। परिचय तो चाहिए न? अतः जब वह 'मैं, बावा और मंगलदास' इस प्रकार से तीन शब्द कहता है, तब जाकर सामने वाला पहचानता है कि हाँ, वह वाला मंगलदास। उसे
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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