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________________ २९० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : इसलिए कहा जाता है न कि सम्यक् दर्शन की कीमत ही ज़्यादा है, ज्ञान की तो नहीं है न? दादाश्री : ज्ञान की और चारित्र की भी ज़रूरत नहीं है। सम्यक् दर्शन कहता है कि मैं तुझे ठेठ तक पहुँचा देता हूँ। हं! पहले दर्शन में आता है। दर्शन अर्थात् प्रतीति में आता है कि यह करेक्ट है और नियम हमेशा ऐसा है कि जहाँ पर प्रतीति होती है वहीं पर ज्ञान और चारित्र को जाना पड़ता है। अतः अपने यहाँ आपको क्या करना है? ज्ञानीपुरुष सिर्फ प्रतीति ही करवा देते हैं तो बहुत हो गया! उसके बाद आपका ज्ञान व चारित्र उसी तरफ जाने का प्रयत्न करेगा। आपको उन्हें मोड़ना नहीं पड़ेगा। बिलीफ जहाँ पर गई, वहाँ उसके पीछे सबकुछ आ जाता है। यह बिलीफ तो बाहर बैठी हुई है, रोंग बिलीफ बैठी हुई है। यह सब साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। निश्चय चारित्र जगत् ने देखा ही नहीं है चारित्र तो मुख्य चीज़ है लेकिन चारित्र का मिलना बहुत मुश्किल है न! इस वर्ल्ड में क्या कोई ऐसा इंसान होगा, जिसमें थोड़ा सा भी चारित्र हो? क्या कोई ऐसा इंसान होगा जिसमें एक प्रतिशत भी चारित्र हो? शास्त्रकारों ने जिसे चारित्र कहा है न, वह चारित्र है ही नहीं। यह चारित्र तो, ज़रा सी भ्रांति दूर हुई उस कारण से है। वास्तविक चारित्र तो देखा ही नहीं है, सुना ही नहीं है। इस ज्ञान प्राप्ति के बाद आप वास्तविक चारित्र के एक अंश में बैठ चुके हो न और उसी का यह स्वाद आ रहा है आपको। वास्तविक चारित्र का अंश चखा। अंश का भी अंश। अब धीरे-धीरे और भी बढ़ता जाएगा। चारित्र जगत ने देखा नहीं है, सुना नहीं है। क्या यह किसी शास्त्र में लिखा गया है? लेकिन शब्दों में है। लेकिन शब्द स्थूल हैं और वाणी भी स्थूल है। उनमें चारित्र नहीं होता। चारित्र चीज़ ही अलग है न! एक सेकन्ड भी जिन्हें चारित्र बर्ते वे भगवान कहलाते हैं। लोग तो किसे चारित्र कहते हैं? ब्रह्मचर्य और आदि-आदि को चारित्र कहते हैं। वह तो उनकी अपनी भाषा का
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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