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________________ [५.२] चारित्र २८९ अच्छा नहीं लगता, यह ज्ञान परिणामित हुआ। जब चंदूभाई उल्टा करें, तब आपको अच्छा लगता है ? क्योंकि यह ज्ञान परिणामित हुआ जबकि धौल लगाने में अज्ञान परिणामित होता है। वह ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ये सभी परिणामित होते हैं। अज्ञान में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप परिणामित होते हैं। धौल लगाई, वह चारित्र कहलाता है। मारने का भाव हुआ, वह ज्ञान कहलाता है, मारने की जो श्रद्धा है, वह दर्शन कहलाती है और मारना, वह चारित्र कहलाता है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र वह वाला (अज्ञान)। उसी प्रकार यह (ज्ञान) भी ज्ञान दर्शन और चारित्र है। लोग कहेंगे, आप उनके क्या लगते हो? तो भाई हम उनके ससुर हैं लेकिन इसमें तो ऐसा है कि कोई धमकाए तो डर जाता है। क्यों? 'ससुर हूँ', ऐसा उसके वर्तन में रहता है, इसलिए डर जाता है। दर्शन में, ज्ञान में और वर्तन में वही सब है। तीनों एक ही हो गए हैं। मिथ्या ज्ञान, मिथ्यादर्शन व मिथ्या चारित्र, इनके चले जाने (खत्म होने) पर सम्यक् दर्शन उत्पन्न होता है। इसीलिए भगवान ने कहा है न कि सम्यक् दर्शन मुख्य कारण है। उसके बाद मोक्ष होगा क्या? तो चारित्र का क्या? तब कहते हैं, 'उसका सम्यक् दर्शन ही चारित्र लाएगा। तू अपनी तरफ से सम्यक् दर्शन कर ले'। सम्यक् दर्शन ही चारित्र को बुलाकर लाएगा। जैसे कि मिथ्यादर्शन, चारित्र को बुला लाता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। मिथ्या चारित्र को बुला लाता है। दादाश्री : कोई न हो, तब छोटा बच्चा भी पेन्ट की जेब में से पैसे निकाल लेता है क्योंकि उसे मिथ्यादर्शन हो गया है। यानी वह प्रतीति ही उससे निकलवा लेती है। और किस प्रकार से निकालना, यह सब भी वह जानता है। प्रश्नकर्ता : अतः मुख्यतः महत्व प्रतीति का है ? दादाश्री : प्रतीति की ही कीमत है सारी।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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