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________________ [५.२] चारित्र २८५ दादाश्री : चारित्र अर्थात्, आपकी समझ में क्या आया है, वह आप अपनी भाषा में बताइए। जो भी आपको समझ में आया हो। प्रश्नकर्ता : चारित्र अर्थात् अच्छी तरह से वर्तन करना, जिसे हम स्ट्रेट फॉरवर्ड कहते हैं। जो टेढ़ा-मेढ़ा या क्रुकेड नहीं हो, वह चारित्रवान कहलाता है। ईमानदार होता है, ऑनेस्ट होता है, मॉरल होता है। दादाश्री : ऐसे सीधे लोग तो बहुत मिलेंगे। उसे चारित्र कैसे कहेंगे? यह तो उस चारित्र के बारे में कहा गया है जो मोक्ष का कारण है। वह चारित्र तो, कोई इंसान सीधा हो और कोई उसकी वाह-वाह करे, कोई उसे पैसे उधार दे, बस! उसका और कोई कारण नहीं है। फिर भी कई लोग (उसके लिए) उल्टा बोलते हैं। चारित्र के दो प्रकार हैं। एक निश्चय चारित्र और दूसरा व्यवहार चारित्र। व्यवहार चारित्र यानी किसी भी विषय पर वृत्ति नहीं हो। पाँचों ही विषयों के प्रति वृत्ति नहीं। पाँचों विषयों में वृत्तियाँ न रहें, वह व्यवहार चारित्र। अब ऐसा कहाँ मिलेगा? त्यागियों में ऐसा खास तौर पर देखने मिलता है। कहीं-कहीं पर मिल आता है। क्योंकि विवाहितों से ज़्यादा त्यागियों में देखने को मिलता है। कोई तो मिल ही जाता है। अभी तो त्यागियों में भी ऐसे (लोग) नहीं मिलते क्योंकि ये सभी तो चटोरे हैं। आँखें देखती ही रहती है। अतः ऐसा होना चाहिए कि वृत्तियाँ पाँचों इन्द्रियों में न जाएँ। उसे व्यवहार चारित्र कहा गया है। प्रश्नकर्ता : वह जो कहते हैं न कि मनुष्य में चारित्रबल होना चाहिए। वह कौन सा चारित्रबल? दादाश्री : एक तो व्यवहार में बाहर का, और दूसरा, आंतरिक होता है। बाहर व्यवहार में ईमानदारी और नैतिकता। न्यायी और ईमानदार होता है और आंतरिक रूप से हक़ के विषय में पत्नी के प्रति सिन्सियर रहता है, अन्य कुछ भी नहीं होता। उसे चारित्र कहते हैं। प्रश्नकर्ता : ऐसा समझते हैं कि चारित्र का मतलब ब्रह्मचर्य है। दादाश्री : वह व्यवहार चारित्र है। उस व्यवहार से किसी को
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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