SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५.१] ज्ञान-दर्शन २६१ दादाश्री : दर्शन अर्थात् जो समझ में फिट हो गया है। प्रश्नकर्ता : अगर इस प्रतीति को दर्शन कहेंगे तो लक्ष किसमें समाएगा? दादाश्री : अनुभव, लक्ष और प्रतीति। प्रतीति का समावेश दर्शन में होता है। लक्ष का जागृति में। लक्ष अर्थात् जागृति। और जो प्रतीति हुई है वह अनुभव में आ जाए तो, उसी को 'ज्ञान होना' कहते हैं। 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह दर्शन है, और जब उसका अनुभव होता है तो वह ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : हम ‘आत्मा का ज्ञान' कहते हैं और फिर 'आत्मा का अनुभव' कहते हैं, तो आत्मा के अनुभव और आत्मा के ज्ञान में क्या अंतर है? दादाश्री : आत्मा का ज्ञान संपूर्ण कहलाता है और अंश-अंश करके अनुभव कहलाता है। अंश ज्ञान को अनुभव कहा गया है और सर्वांश ज्ञान को ज्ञान कहा गया है। एक-एक अंश बढ़ते-बढ़ते संपूर्ण अनुभव हो जाता है। प्रश्नकर्ता : और अभी जिन्हें आप ज्ञान देते हैं, उन लोगों को आत्मा का ज्ञान होता है या आत्मा का अनुभव भी होता है ? दादाश्री : सभी को अनुभव ही होता है। यदि अनुभव नहीं है तो फिर आत्मा ही नहीं है न? प्रश्नकर्ता : क्या जागृति अनुभव का ही भाग है? दादाश्री : जागृति रहती ही है। प्रश्नकर्ता : वही अनुभव है न? दादाश्री : नहीं। जागृति तो ऐसी चीज़ है कि जिससे हमें ये सारे दूसरे अनुभव होते हैं। एक तरफ लिखें कि पहले जो चंदूभाई थे, वे कैसे थे और दूसरा अभी के चंदूभाई कैसे हैं? वह किस वजह से है? तो वह
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy