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________________ २५२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : मूल आवरण चला गया। अब दूसरे आवरण बचे हैं। रूट कॉज़ चला गया। अब पहले ऊपर के पत्ते सूखेंगे, डालियाँ सूखेंगी, उसके बाद तना सूखेगा। रूट कॉज़ निकाल दिया है, काट दिया है फिर भी हरा-भरा तो दिखाई देगा न ऊपर से! कुछ दिनों तक! केवलज्ञान हो जाएगा तो पूर्ण हो जाएगा, सभी आवरण चले जाएँगे। वह निरावृत ज्ञान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ', क्या यह ज्ञान है? दादाश्री : नहीं। वह ज्ञान तो विज्ञान कहलाता है। ज्ञान तो इन शब्दों में लिखा रहता है। जो करना पड़ता है उसे ज्ञान कहते हैं। और जो करना नहीं पड़ता, अपने आप सहज रूप से होता रहता है, वह विज्ञान है। यह न तो मुमुक्षुओं का ज्ञान है, न ही जिज्ञासुओं का ज्ञान, यह तो ज्ञानियों का ज्ञान है। अब आप खुद ही ज्ञानी बन जाते हो, जब से यह ज्ञान मिला, तभी से आप ज्ञानी बन गए। अतः आप ज्ञानी कहलाते ज़रूर हो लेकिन अगर कोई पूछे कि 'लो, इस बारे में बताओ', तो फिर जवाब देना नहीं आएगा, क्योंकि एक्सपिरियन्स करते हुए नहीं आए हो। यह ज्ञान आपको रास्ते चलते प्राप्त हो गया है। डिस्चार्ज मान के सामने ज्ञान जागृति प्रश्नकर्ता : दादा, ज्ञान लेने के बाद अब मुझे ऐसा नहीं लगता कि पिछले एक-दो सालों में किसी पर राग-द्वेष हुआ हो। वास्तव में तो लगभग होता ही नहीं है लेकिन यह जो मान परिणाम खड़ा होता है न, वह यों इतनी आसानी से नहीं जाता। दादाश्री : उसे जाने नहीं देना है, उसे देखना है, वह डिस्चार्ज है और अभी अगर डिस्चार्ज में जो राग-द्वेष हैं तो वह अज्ञान का परिणाम है। 'आपको' अगर उसमें राग-द्वेष नहीं होते हैं तो वह आत्मा प्राप्ति का परिणाम है। अब वह तो डिस्चार्ज है, वह निकलता रहेगा।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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