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________________ २४२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : ज्ञान भी पुद्गल का ही है। आत्मा सर्वस्व ज्ञानी है लेकिन जितना पुद्गल आवरण हटता है, यहाँ पर उतनी डिग्री तक, उतना ही पुद्गल ज्ञान प्रकट हो जाता है। प्रश्नकर्ता : आवरण हटने से चेतन का ज्ञान प्रकट हुआ न? दादाश्री : हाँ प्रकट हुआ। फिर भी आत्मा में तो पूरा-पूरा ज्ञान है ही। जिसमें प्रकट हुआ उसका ज्ञान। ज्ञान तो आत्मा का है लेकिन यह प्रकट किसमें हुआ है कि 'इतनी डिग्री प्रकट हुई हैं'। ज्ञान, पुद्गल का ज्ञान है। प्रश्नकर्ता : वह पुद्गल का कहलाता है? दादाश्री : वह पुद्गल का है। आत्मा का ज्ञान तो पूर्ण ही है लेकिन अंत में जब पुद्गल का ज्ञान पूर्ण होगा तब मोक्ष में जाएगा। क्योंकि उसे उसके बराबर का कर देना है। भावना कर-करके उस रूप ही बनाना है। पुद्गल को भगवान बनाना है। जब 'खुद' 'उसके' जैसा हो जाएगा तो मुक्त हो जाएगा। फिर पूर्णाहुति हो जाएगी। धीरे-धीरे भावना कर-करके इस पुद्गल को भगवान बनाना है। ज्ञानी बन गए लेकिन अभी कुछ बाकी बचा है, कच्चा है। अब ज्ञानी, वे आत्मा नहीं कहलाते, पुद्गल कहलाते हैं। दरअसल (वास्तविक) आत्मा तो पूर्णतः सर्वज्ञ है। अतः यह जो पुद्गल है, वह व्यवहार आत्मा कहलाता है। प्रश्नकर्ता : तो इसे ऐसा कहा जाएगा कि ज्ञान व्यवहार आत्मा को हुआ है? दादाश्री : जो पुद्गल है, उसे व्यवहार आत्मा कहते हैं तो व्यवहार आत्मा का खुद का ज्ञान कितना है? कि इतना हुआ है। लेकिन जब पूर्णाहुति होगी तब दोनों का छूट कारा हो जाएगा। जब तक दोनों पूर्ण नहीं हो जाते तब तक छूट कारा नहीं हो सकता। प्रश्नकर्ता : जो व्यवहार आत्मा है, उसकी उत्पत्ति किस प्रकार से हुई?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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