SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४] ज्ञान-अज्ञान दादाश्री : हमारे ये सारे इफेक्ट कॉज़ रहित हैं न! तब तक फोटो खिंच सकता है । अतः तब तक पैरेलल पैरेलल चलता है यह, रिलेटिव और रियल दोनों। फोटो खिंच सकता है, इसलिए उस रिलेटिव की फोटो का लाभ मिलता है न, और यह एक्ज़ेक्ट का लाभ मिलता है न, रियल का। उतना ज्ञान पैरेलल चलता रहता है । अतः सबकुछ मिलता-जुलता है। उन्हें जो जानना है वह सबकुछ मिलता-जुलता है 99 डिग्री, 99 पोइन्ट तक। अंतिम वाला उन्हें समझ में नहीं आ सकता । जिसका फोटो नहीं खिंच सकता । २४१ प्रश्नकर्ता : यह ठीक से समझ में नहीं आया । फिर से समझाइए कि रियल और रिलटिव, दोनों 99.99 तक एक सरीखे लगते हैं । दादाश्री : यह रिलेटिव ज्ञान है लेकिन साथ-साथ चलता है। पैरेलल । जैसे दो पटरियाँ सभी जगह पर साथ-साथ रहती हैं न ! लेकिन वह फोटोग्राफी के रूप में होता है और यह एक्ज़ेक्ट रूप में है। अंतिम 100 वें अंश का फोटो नहीं खिंच सकता । वहाँ पर उतना फोटोग्राफी के रूप में नहीं है I प्रश्नकर्ता : रिलेटिव और रियल ज्ञान तो अलग ही हैं न? दादाश्री : हाँ, ज्ञान अलग हैं । यह रियल एक्ज़ेक्ट रूप से है और वह रिलेटिव फोटो के रूप में है। फर्क तो बहुत ज़्यादा है लेकिन एक्ज़ेक्ट उसके जैसा ही है पूरा। डिज़ाइन - विज़ाइन सब मिलती-जुलती होती हैं। वह क्रियाकारी नहीं है और यह क्रियाकारी है । आवरण खिसकने से प्रकट होता है आत्मज्ञान आत्मा का ज्ञान तो संपूर्ण ही है लेकिन आत्मा तो ज्ञानी ही है न! पुद्गल का आवरण जितना हटता है, उतना ही ज्ञान प्रकट होता है, बस। यानी पुद्गल का ज्ञान वहाँ आकर रूक जाता है। तो इतनी डिग्री तक पहुँचा है यह। प्रश्नकर्ता : तो ज्ञान पुद्गल का है या आत्मा का है ?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy