SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [४] ज्ञान-अज्ञान २३९ निर्दोष भी निर्दोष दिखाई दें, उसी को परमात्मा कहते हैं। उसे शुद्ध ज्ञान कहते हैं, शुद्ध दर्शन कहते हैं। ___ अंतिम समझ क्या है कि इस जगत् में कोई दोषित है ही नहीं। जगत् पूरा निर्दोष ही है। ज्ञान ही आत्मा है, वही परमात्मा है। हर एक के पास जो ज्ञान है, वही आत्मा है। शुद्ध ज्ञान परमात्मा है और इन मनुष्यों में भी जो उनका ज्ञान है, वही आत्मा है, और आत्मा अर्थात् सेल्फ, खुद। नया ज्ञान ग्रहण करता है या सिर्फ आवरण टूटते हैं? जब तक अज्ञान दशा है तब तक वह मूढ़ात्मा कहलाता है। समझने के लिए हमने मूढ़ात्मा के दो विभाग किए है, विषय आत्मा और कषाय आत्मा। फिर जब वस्तुत्व का भान होता है, तब शुद्धात्मा बनता है। वह अंतरात्मा कहलाता है और फिर अपने आप ही परमात्मा बनता जाता है, पूर्णत्व होता जाता है। प्रश्नकर्ता : आपने ये जो तीन प्रकार के आत्मा बताए, वैसा आत्मा होने के लिए कुछ करना पड़ता है या जन्म से ही उस अनुसार होता है? यह किस प्रकार से होता है? दादाश्री : नहीं, वह तो जन्म से ही जितना पूर्व जन्म का ज्ञान लेकर आया है, वह सारा इस ज्ञान से बदलता जाता है। जैसे-जैसे उसे ज्ञान के सभी संयोग मिलते जाते हैं वैसे-वैसे यह बदलता जाता है। विषयों में से फिर कषायी होता जाता है। कषायों में से वापस कषाय हल्के होते जाते हैं। एकदम से तो मुक्त नहीं होता लेकिन कषाय हल्के होते जाते हैं, हल्के होते-होते-होते फिर वह कषाय मुक्त शुद्धात्मा बन जाता है। पिछले जन्म में जितना कुछ करके आए हैं, अब वापस हमें फिर से नई प्राप्ति करनी पड़ेगी। भ्रांति में होने के बावजूद वह ज्ञान उसे हेल्प
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy