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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
तब वह शोर मचाकर रख देता है। आपने सुना नहीं कभी मुर्गे को काटते समय?
फिर बाद में शुभ ज्ञान आता है। शुभ समझ और शुभ ज्ञान आता है। फॉरेन वाले कहते हैं कि 'किसी को मारना मत, किसी को दु:ख नहीं देना है और कोई हमें दुःख न दे'। वह शुभाशुभ ज्ञान कहलाता है। यदि कोई मुझे दुःख देगा तो मैं भी दूंगा लेकिन अगर कोई दुःख नहीं देगा तो नहीं दूंगा। यह शुभाशुभ ज्ञान कहलाता है। हमारे सभी धर्म शुभाशुभ में पड़े हुए हैं। ज्ञान और समझ शुभाशुभ वाली है। अगर सिर्फ शुभ ज्ञान ही होगा तो कोई उसे दुःख दे तब भी वह दुःख नहीं देगा और जो किसी को दुःख न दे, ऐसे शुभ ज्ञान और शुभ समझ वाला सुपर ह्युमन कहलाता है। मनुष्य में से देवलोक में जाता है। वह शुभ समझ कहलाती है, शुभ ज्ञान। और उससे भी आगे हैं शुद्ध ज्ञान। शुद्ध ज्ञान वाले को किस तरह से पहचाना जा सकता है? अगर शुद्ध ज्ञान वाले की कोई जेब काट ले तब भी उसे वह निर्दोष दिखाई देता है। तो अगर फॉरेन वाले को समझाएँ कि 'आपको निर्दोष दिखाई देता है' तब कहेंगे, 'नहीं। निर्दोष कैसे देखाई देगा? वह खुले तौर पर जेब काट रहा है न!' तब अगर हम बताएँ कि 'हमारे यहाँ वीतराग किसे कहा जाता है ? 'जिसे सामने वाला निर्दोष दिखाई देता है उसे हम वीतराग कहते हैं।' तो वह समझ जाएगा या नहीं कि वीतराग क्या है ?
प्रश्नकर्ता : समझ जाएगा।
दादाश्री : इसी प्रकार क्रमपूर्वक समझाते हैं। मार-ठोककर समझाने जाएँगे तो उसे प्राप्ति नहीं होगी। जिसे राग-द्वेष नहीं हैं, वह वीतराग। वह तो नहीं समझता न? राग भी नहीं और द्वेष भी नहीं। वह कहता है कि 'अटैचमेन्ट तो होता है। ऐसा कैसे हो सकता है?' लेकिन जब उसे समझाएँ कि 'यह ज्ञान तो जेब कतरे को भी निर्दोष दिखाता है, ऐसा ज्ञान उत्पन्न हो जाता है'। यह ज्ञान डेवेलप होते-होते अंतिम ज्ञान, वही परमात्मा है और जो भी मानो वह यही है। शुद्धात्मा कहो या परमात्मा कहो। जगत् निर्दोष दिखाई दिया। जिसे दोषित भी निर्दोष दिखाई दें और