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________________ २३० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : 'वह खुद यह है' इसका मतलब क्या है दादा? दादाश्री : ज्ञान या अज्ञान, वह खुद वही है। वही उसका उपादान है लेकिन वह समझ में नहीं आता इसलिए उसके प्रतिनिधि अर्थात् अहंकार को हम स्वीकार करते हैं। यह बहुत गहरी बात है। संत भी नहीं जानते। क्रमिक मार्ग के ज्ञानी भी नहीं जानते।। प्रश्नकर्ता : हाँ, वह ऐसा नहीं है कि ज़रा जल्दी से समझ में आ जाए। दादाश्री : समझ में नहीं आ सकता। प्रश्नकर्ता : अभी तक हम यही कहते हैं कि अहंकार ही यह सब करता है। दादाश्री : यह तो, ये सज्जन आए इसलिए बात निकली वर्ना निकलती ही नहीं न ऐसी गहन बात। बात तो मैंने बता दी। बात समझने जैसी है, गहन है। अतः ज्ञान और अज्ञान की वजह से ये कर्म बंधते हैं। उपादान या अहंकार, जो कहो वह यही है। वह खुद ही लेकिन यों वास्तव में अहंकार इससे अलग है। अहंकार अलग दिखाई देता है जबकि यह तो ज्ञान और अज्ञान, प्रकाश और अंधकार! उसी आधार पर वह यह सब करता है। प्रश्नकर्ता : हाँ। लेकिन अगर ज्ञान हो, अज्ञान हो और अहंकार नहीं हो तो फिर क्या होगा? तो कर्म बंधन होगा ही नहीं न? दादाश्री : अहंकार रहता ही है। जहाँ पर ज्ञान और अज्ञान दोनों एक साथ हों, वहाँ पर अहंकार रहता ही है। प्रश्नकर्ता : अज्ञान है, इसलिए अहंकार है ? । दादाश्री : रहता ही है। जब अज्ञान चला जाएगा, तब अहंकार
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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