________________
[४] ज्ञान-अज्ञान
२२५
दादाश्री : वह अज्ञान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : और वह अहम् से उत्पन्न होता है ?
दादाश्री : हं। यह सब जो चल रहा है, वह ज्ञान, दुनिया में जो चल रहा है वह क्रिया वाला ज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : और जो अपने अंदर की क्रियाएँ हैं, मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार की, उनका आधार भी अज्ञान ही है न?
दादाश्री : हं। वही क्रिया वाला ज्ञान है। 'मैं कर रहा हूँ', वह क्रिया है और उसका जो ज्ञान है, वह सारा ज्ञान भी अज्ञान है और वह क्रिया भी अज्ञान...
प्रश्नकर्ता : अहंकार वाला ज्ञान, वह एक प्रकार की जानकारी ही हुई न? तो जानकारी और ज्ञान में क्या फर्क है ?
दादाश्री : सारी जानकारी विनाशी होती हैं और वे टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट हैं! ज्ञान अविनाशी होता है।
__ प्रश्नकर्ता : अर्थात् उसके पास जो ज्ञान है, वह ज्ञान उसके लिए तो क्रियाकारी ही है न! वह उसी अनुसार व्यवहार करता है, उसी अनुसार बोलता है, उसी अनुसार सोचता है।
दादाश्री : लेकिन उसके साथ अहंकार है न!
प्रश्नकर्ता : क्रियाकारी का अर्थ क्या बताया? इस चेतन ज्ञान को क्रियाकारी कहा...
दादाश्री : अहंकार है तभी उससे क्रिया हो सकेगी। क्रियाकारी है, लेकिन अगर अहंकार है तभी हो सकेगी, वर्ना नहीं हो सकेगी। जबकि ज्ञान तो अपने आप ही, खुद अपने आप ही क्रिया करता है। चेतन ज्ञान स्वयं क्रियाकारी है।
प्रश्नकर्ता : ठीक है। अगर अहंकार होगा तभी यह विशेष ज्ञान क्रियाकारी होगा।