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[४] ज्ञान-अज्ञान
जितनी भी स्लाइस की जाएँ तो क्या एक भी उजाले वाली निकलेगी ? ! वह तो अँधेरे वाली ही निकलेगी । लोग इस आशा से स्लाइस करते जाते हैं कि ज़रा सा कुछ उजाला निकलेगा, तो इसका कोई मीनिंग ही नहीं है न। अज्ञानता की आप चाहे जितनी भी स्लाइस करो, उसमें ज्ञान नहीं होगा।
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और ज्ञान हमेशा सुख देता है, अज्ञान दुःख देता है । इस प्रकार जब तक ज्ञान और अज्ञान दोनों एक साथ हैं, तब तक सांसारिक है।
प्रश्नकर्ता : ऐसा हो सकता है कि अज्ञान न जाए लेकिन फिर भी ज्ञान हो जाए ?
दादाश्री : ऐसा नहीं हो सकता । अँधेरा निकल नहीं पाता और उजाला हो नहीं पाता । ज्ञान उजाला है।
प्रश्नकर्ता : यों ही उदाहरण दे रहा हूँ । यहाँ बैठे हैं, यहाँ पर उजाला है, और सामने अँधेरा है । अर्थात् अँधेरा हो सकता है, अज्ञान हो सकता है। अज्ञान भले ही रहे लेकिन अगर ज्ञान हो जाए तो इस अज्ञान का कोई इफेक्ट नहीं रहेगा।
दादाश्री : ज्ञान उसी को कहते हैं कि जहाँ अँधेरा रह ही न सके। यह प्रकाश ऐसा है कि इसमें अगर आम रखा जाए तो आम की परछाई पड़ेगी, उसमें परछाई नहीं पड़ती । आत्मा का प्रकाश ऐसा है कि परछाई नहीं पड़ती किसी चीज़ की । अर्थात् इस प्रकाश में आप आकार बता सकते हो कि ‘देखो वहाँ अँधेरा है'। जबकि आत्मा के प्रकाश में अँधेरा नहीं रह सकता, वह तो प्रकाश है, प्रकाश यानी प्रकाश ।
ज्ञान कौन लेता है ?
प्रश्नकर्ता : तो फिर यह जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह किसे होता है ? जड़ को तो नहीं होता !
दादाश्री : जिसे अज्ञान है उसी को होता है ।