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________________ २०२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) न कि अज्ञान है! हम कोर्टों में ये सारे केस चलाते हैं तो फिर हम उसे अज्ञान नहीं कह सकते न! लेकिन मोक्ष हेतु से यह अज्ञान है। बुद्धि को भी अज्ञान में ही डाल दिया है। आत्मा खुद ही ज्ञान स्वरूप है, अन्य कोई कल्पित चीज़ नहीं है वह। और ज्ञान कभी भी अज्ञान नहीं बन जाता, ज्ञान ज्ञान ही रहता है। प्रश्नकर्ता : आवरण आ जाता है। दादाश्री : हाँ, आवरण आने से वह विशेष ज्ञान बन जाता है लेकिन वह ज्ञान ज्ञान ही है। अतः जब मूल ज्ञान, शुद्ध ज्ञान होगा तभी मोक्ष है और शुद्ध ज्ञान ही आत्मा है, वही मोक्ष है, वही स्वाभाविक सुख है। संसार का जो सारा ज्ञान है, वह विशेष ज्ञान है, आत्मा के मूल ज्ञान के आधार पर यह अज्ञान है लेकिन सांसारिक लोग इसे ज्ञान कहते हैं और फिर इसका भी अज्ञान, वह अलग चीज़ है। यह सांसारिक ज्ञान भी जिसे नहीं आता है, उसका भी फिर अज्ञान। प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। हम यह जो उदाहरण देते हैं न कि कढ़ी बनाना तो आता ही नहीं, इसका अज्ञान है उसे। दादाश्री : उसे अज्ञान कहा गया है। मूल रूप से तो यह खुद ही अज्ञान है. लेकिन फिर उसे ज्ञान कहा गया है। देखो इन लोगों का पगडी पहनने का ठिकाना है? कैसे भी पगड़ी बाँध लेते हैं इसके बजाय इन लोगों से कहना चाहिए कि 'भाई अब पगड़ी नहीं पहननी है। हम चले अपने गाँव'। जिसमें छाया न पड़े ऐसा उजाला प्रश्नकर्ता : आपने जो कंडिशन रखी है न दादा, कि अज्ञान जाएगा तो ज्ञान हो जाएगा? दादाश्री : हाँ, अज्ञान हटेगा तो ज्ञान होगा। अँधेरे की चाहे
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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