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[३] मैला करे वह भी पुद्गल, साफ करे वह भी पुद्गल
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पुद्गल कर्ता है। उन दिनों कर्ता थे, अतः पराक्रम किया था। आज वह ज्ञाता-दृष्टा के रूप में आया है।
प्रश्नकर्ता : तो अब तो हम ज्ञान लिए महात्माओं के लिए पराक्रम या पुरुषार्थ जैसा कुछ रहा ही नहीं न? सिर्फ देखना ही है न?
दादाश्री : देखना ही बाकी रहा लेकिन पिछले जन्म में हमने नासमझी में जो पुरुषार्थ किया, आज हमें उसे देखते रहना है। अतः हमें चंदूभाई से कहना पड़ेगा न कि 'तू इतना करना'। आपको 'चंदूभाई' से कहना है कि 'ऐसा भाव करना'। आपको देखना है कि चंदूभाई वह कर रहे हैं या नहीं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, वह तो ठीक है। तो इस प्रकार से मुक्त है।
दादाश्री : अब जो वेदना है वह चंदूभाई की है, और वह डिस्चार्ज के रूप में और डिस्चार्ज से तो कोई बच ही नहीं सकता न! भगवान महावीर को भी यहाँ कान में बरु (जंगली पौधे की नुकीली डंडी) ठोके गए थे, तो चेहरे पर छ:-आठ महीने तक उसका असर रहा! तो चेहरे पर क्या रहता होगा भगवान को? व्यथित रहते थे।
प्रश्नकर्ता : दर्द होता था इसलिए व्यथित रहते थे न !
दादाश्री : तो क्या उससे कर्म चिपक गया? नहीं। और इसके बावजूद भी हल आ ही गया। निवारण ही हो गया उनके लिए। व्यथित होने से कहीं चिपक नहीं गया क्योंकि खुद व्यथित नहीं हुए थे, शरीर व्यथित था। इसी प्रकार आप खुद क्रोध-मान-माया व लोभ कषाय में नहीं हो।
प्रश्नकर्ता : पुद्गल है।
दादाश्री : हाँ, पुद्गल का तो निबेड़ा आ जाता है। उसका निकाल होना ही चाहिए। उसे परेशान नहीं होना है, ऐसा रहना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : ये जो कषाय हैं, वे पुद्गल के अधीन ही हैं न? पुद्गल का ही परिणाम हैं न?