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________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) राग है। यह ज्ञान दिया है फिर भी राग नहीं जाता'। मैंने कहा, 'वह राग नहीं है बहन । वह आसक्ति है'। तब कहने लगीं, लेकिन ऐसी आसक्ति नहीं रहनी चाहिए न?' मैंने कहा, 'वह आसक्ति आपको नहीं है'। अपने यहाँ लोहचुंबक हो और आलपिन पड़ी हों तो ऐसे-ऐसे करने से आलपिन हिलने लग जाती है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हिलती हैं। दादाश्री : इन आलपिनों में आसक्ति कहाँ से आई? उसी प्रकार से इस शरीर में लोहचुंबक जैसे गुण हैं क्योंकि यह इलेक्ट्रिकल बॉडी है। इलेक्ट्रिसिटी से शरीर में लोहचुंबक जैसा गुण आ जाता है लेकिन वह लोहचुंबक चाहे कैसा भी हो पर वह तांबे को नहीं खींच सकता। किसे खींचता है? सिर्फ लोहे को, स्व जाति को। उसी तरह इसमें जो परमाणु हैं न, अपनी बॉडी में! वे लोहचुंबक वाले हैं तो स्व जाति को खींचते हैं। वही यह आसक्ति है, उसका तूफान तू देखता रह । तू यह देखता रह कि यह शरीर ऐसे कूदा और कहाँ जा रहा है वगैरह और यह समझना छोड़ दे कि 'मुझे हो रहा है'। अतः वापस फिर 'मुझे अब कुछ भी नहीं छू सकता', ऐसा करके दुरुपयोग कर लेगा तो क्या होगा? वह तो अंगारों में हाथ डालने के बराबर है। यह जागृति रखनी चाहिए कि 'मुझे' अर्थात् किसे? 'मैं शुद्धात्मा हूँ', यदि ऐसी जागृति रहती है तब तो फिर उसे कहने की ज़रूरत ही नहीं है कि 'मुझे कुछ नहीं हो सकता'! उस बच्चे पर सिर्फ आसक्ति है। परमाणु से मिलते-जुलते परमाणु आ गए हैं। तीन परमाणु आपके और तीन परमाणु उसके, मेरे तीन और आपके चार तो कोई लेना-देना नहीं है। विज्ञान है यह सब तो। पागल पत्नी के साथ अच्छा लगता है और समझदार पत्नी उसे बुलाए तो अच्छा नहीं लगता क्योंकि परमाण नहीं हैं पति में। मिलतेजुलते परमाणु नहीं हैं। भगवान तो सिर्फ यह देखते हैं कि कितने राग-द्वेष होते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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