SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ आप्तवाणी-९ दादाश्री : लेकिन इन्हें मोक्ष में ले जाना है, तो मुझे सावधानीपूर्वक चलना पड़ेगा न! उसका क्या जाता है? वह तो, एक व्यक्ति था, उसने कहा, 'दादाजी, लीजिए आपकी पुस्तकें और आपका ज्ञान आपको वापस दिया।' मैंने कहा, 'हाँ, बहुत अच्छा हुआ। तेरा उपकार मानता हूँ।' वर्ना रास्ते में पुस्तक फेंक दी होतीं। उसके बजाय यह तो घर आकर वापस देकर गया। उसे गुण नहीं मानना पड़ेगा? 'यह आपका ज्ञान वापस देता हूँ' कहता है। वह तो मैं ही ले सकता हूँ न चैन से! प्रश्नकर्ता : चैन से, और फिर उपकारी दृष्टि से लेते हैं। दादाश्री : हाँ, उसने रास्ते में नहीं फेंक दिया, यानी कि समझदार इंसान है! अच्छा किया। प्रश्नकर्ता : यह तो, आप 'ज्ञानीपुरुष' हैं, तो सामने वाले की आड़ाई निकल सकती है। दादाश्री : जल्दी निकल सकती है। वर्ना मार खा-खाकर, नुकसान उठाकर निकलती है। नुकसान उठाता रहता है और नुकसान के अनुभव होते जाते हैं न, वैसे-वैसे आड़ाई निकलती जाती हैं। नहीं तो कितने ही जन्म बीत जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए प्रश्नकर्ता : इन 'ज्ञान' लिए हुए महात्माओं को आड़ाई अधिक तकलीफ देती है या अटकण (जो बंधनरूप हो जाए, आगे नहीं बढ़ने दे) अधिक तकलीफ देती है ? । दादाश्री : अटकणे! आड़ाईयाँ तो बहुत तकलीफ नहीं देतीं। आड़ाईयों को तो वह समझता है कि आड़ाई गलत चीज़ है। यह 'ज्ञान' मिलने के बाद आड़ाई उसे मार खिलाती है, अर्थात् यह भरी हुई आड़ाई है, जो पूरण (चार्ज होना, भरना) की हुई है, उसका गलन (डिस्चार्ज होना) हो रहा है। वह मार खिलाती है अतः आड़ाई का शौक नहीं है लेकिन अटकण अधिक दुःख देती है। हालांकि ये सभी दोष अभी भी
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy