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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा प्रश्नकर्ता : 'बँक देता है, वह क्या है ? दादाश्री : उस पर ढंक देता है, वह 'डबल' आड़ाई। प्रश्नकर्ता : तो फिर उस आड़ाई को निकलने का स्कोप ही नहीं रहा न? दादाश्री : बढ़ जाती है बल्कि। प्रश्नकर्ता : लेकिन अपना लक्ष्य तो आड़ाई को जड़ से खत्म करने का ही होता है न? तो वहाँ पर क्या करना चाहिए? दादाश्री : तू अपने आप करने जाएगा, तो तुझसे नहीं हो पाएगा। मुझसे पूछना कि यह किस तरह से है, तो मैं बता दूंगा कि 'भाई, यह आड़ाई निकाल!' प्रश्नकर्ता : एक तो आड़ाई नाम की चीज़ पैदा हो गई है, फिर उसे खुद ढंक दे तो वह डबल आड़ाई। तो फिर वह आड़ाई पूछने ही नहीं देगी न। तब वहाँ पर क्या करना चाहिए? दादाश्री : लेकिन मेरे जैसा कहेगा न कि 'कहाँ चला? कौन से गाँव जाना है ?' कई ऐसे हैं कि यदि उन्हें साफ-साफ कह दें तो टेढ़ा चलता है इसलिए मुझे घुमाकर कहना पड़ता है। अभी कच्चा है न सब। पटा-पटाकर काम लेना पड़ता है। बच्चों को तो समझाते रहते प्रश्नकर्ता : सभी बच्चे जैसे दिखते हैं और पटा-पटाकर आपको मोक्ष में ले जाना है। उस समय आपको कितनी अधिक करुणा रहती होगी! दादाश्री : ये सब बच्चे जैसे दिखते हैं। बच्चा रूठ जाता है न, उस तरह से। लेकिन पटा-पटाकर आगे ले जाना है। प्रश्नकर्ता : और आपको माफी माँगकर भी पटाते हुए देखा है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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