SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी - ९ दादाश्री : 'ज्ञान' प्रकट हो गया क्योंकि भीतर से शुद्ध था न ! ममता नहीं थी। सारी परेशानी ही इस अहंकार की थी लेकिन ममता नहीं थी इसलिए यह दशा मिली ! थोड़ी भी ममता नहीं, लालच नहीं लेकिन किसी ने मेरा नाम लिया कि उसकी आ बनी। इसलिए कई लोग तो मेरी पीठ पीछे ऐसा कहते थे, 'इसे बहुत घमंड है ।' और कई लोग कहते थे कि, ‘अरे ! जाने दो न, तुंडमिजाज़ी है ।' यानी मेरे लिए किन-किन विशेषणों का उपयोग होता था, वह सब बाद में पता लगाता था । लेकिन मुझमें ममता नहीं थी। वह मुख्य गुण अच्छा था, उसी का प्रताप है यह ! और ममतावाला तो सौ गुना सयाना हो तो भी संसार में ही गहरा उतरा रहता है। हम ममता रहित थे, इसलिए वास्तव में मज़ा आया। ममता ही संसार है, अहंकार संसार नहीं है । १४ और तब मुझे भी लगा कि अब सीधा हो गया मैं। अब किसी को मुझे सीधा नहीं करना पड़ेगा । प्रश्नकर्ता : कैसे सीधे हो गए, दादाजी ? दादाश्री : लोगों ने मार मारकर, उल्टा - सुल्टा करके, इधर-उधर से शिकंजे में लेकर सीधा कर दिया । प्रश्नकर्ता : वह पिछले जन्मों से ही शुद्ध होता आ रहा था न ? दादाश्री : कितने ही जन्मों से सीधे होते-होते आए हैं, तब जाकर इस जन्म में पूरे सीधे हो गए। बाकी, हिन्दुस्तान का माल सीधा नहीं होता, टेढ़ा ही होता है । कुछ का तो जन्म लेते समय भी सिर नीचा होने के बदले ऊपर होता है और कुछ तो गर्भ में ही टेढ़े हो जाते हैं, तो वह अपनी माँ को भी मार देता है, खुद भी मरता है और सभी को मारता है और डॉक्टर का भी फज़ीता करता है । प्रश्नकर्ता : लेकिन उसमें उसकी वैसा करने की इच्छा नहीं होती । वह तो हो जाता है न ? दादाश्री : मूल से ही टेढ़ा स्वभाव, अतः जहाँ जाए वहाँ टेढ़ा हो
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy