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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा १३ वह दिखाई देता है (दर्शन में आता है), इसलिए हम कह देते हैं। माफिक आए ऐसी चीज़ दिखाई दे, तो कह देते हैं। हम कहाँ ऐसा याद रखें? हमें ठेठ तक का, बचपन में था तब तक का, सब दिखता ही रहता है, सभी पर्याय दिखाई देते हैं। ऐसा था... ऐसा था, फिर ऐसा था। स्कूल में हम, घंटी बजने के बाद जाते थे, वह सबकुछ हमें दिखाई देता है। मास्टर साहब चिढ़ते रहते थे। कुछ कह नहीं सकते थे और चिढ़ते रहते थे। प्रश्नकर्ता : आप घंटी बजने के बाद क्यों जाते थे? दादाश्री : ऐसा रौब था! मन में ऐसी खुमारी थी। लेकिन सीधे नहीं हुए तभी यह दशा हुई न! सीधा इंसान तो घंटी बजने से पहले ही जाकर बैठ जाता है। प्रश्नकर्ता : रौब मारना उल्टा रास्ता कहलाता है ? दादाश्री : वह तो उल्टा रास्ता ही है न! घंटी बजने के बाद भाई साहब आते हैं, मास्टर साहब पहले ही आ चुके होते थे। मास्टर साहब देर से आएँ तो चलता है, लेकिन विद्यार्थी को तो नियम से घंटी बजने से पहले पहुँच जाना चाहिए न! लेकिन ऐसी आड़ाई थी। कहता है, 'मास्टर साहब अपने मन में क्या समझते हैं?' ले! अरे, तुझे पढ़ने जाना है या लड़ाई का मोर्चा लगाना (बाखड़ी बाँधना) है? तब कहता है, 'नहीं, पहले मोर्चा लगाना है।' लड़ाई का मोर्चा लगाना कहते हैं इसे। आपने बाखड़ी शब्द सुना है? आपने भी सुना है? तब ठीक है। प्रश्नकर्ता : तो मास्टर साहब आपको कुछ कहते नहीं थे? दादाश्री : कहते तो थे, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं कह पाते थे। उन्हें डर लगता था कि बाहर जाकर पत्थर मारेगा, सिर फोड़ देगा। प्रश्नकर्ता : दादाजी, आप इतने शरारती थे? दादाश्री : हाँ, शरारती थे। सारा माल ही शरारती था, टेढ़ा माल। प्रश्नकर्ता : और फिर भी यह 'ज्ञान' (प्रकट) हो गया, यह तो बहुत बड़ी बात है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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