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________________ [८] जागृति : पूजे जाने की कामना _ 'ज्ञानी' के नज़रिये से समझ 'ज्ञानीपुरुष' की समझ से समझ मिलानी है, 'पैरेलल टु पैरेलल।' वर्ना 'रेल्वे लाइन' उड़ जाएगी। 'खुद की' समझ तो डालनी ही नहीं है। अंदर समझ है ही नहीं न! रत्तीभर भी समझ नहीं है। खुद की समझ तो इसमें चलानी ही नहीं है। खुद में समझ है ही नहीं न! कुछ भी समझ नहीं है। यदि समझ होती न, तो भगवान बन जाता! प्रश्नकर्ता : लोग प्रश्न पूछे और उनका खुलासा दें तो उसमें हर्ज क्या है? दादाश्री : प्रश्नों के खुलासे अलग चीज़ है। अभी तो जागृति आनी चाहिए, अभी जागृति परिणामित होनी चाहिए। परिणामित होने के बाद, बहुत समय बाद में फिर दिए गए खुलासे काम के हैं। नहीं तो खुलासे तो, दो-खुलासे दिए और अपना ज्ञान ‘डाउन' हो जाएगा, बुद्धिगम्य हो जाएगा। प्रश्नों के जवाब देने से पहले तो पूरा 'इगोइज़म' उतर जाना चाहिए। पूरा यानी नाटकीय 'इगोइज़म' भी उतर जाना चाहिए। अभी तो ये सारे 'फंक्शन' कच्चे हैं। इन ‘फंक्शन' पूरे हुए बिना स्याद्वाद वाणी नहीं निकल सकती। इसके बजाय तो बोलना ही नहीं चाहिए क्योंकि दोष लगता है। वह तो, जैसे-जैसे ये सारे पासे दबते जाएँगे, बुद्धि दबती जाएगी, 'इगोइज़म' खत्म होता जाएगा, वैसे-वैसे स्याद्वाद वाणी निकलेगी। अभी प्रश्नों में नहीं पड़ना है नहीं तो कच्चा कट जाएगा। फिर
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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