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________________ ४२८ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : नहीं, सब से बड़ा जोखिम है यह तो। दादाश्री : आत्मघाती तत्व है। प्रश्नकर्ता : और फिर वह आगे बढ़ने ही नहीं देता, दूसरा नया ज्ञान उत्पन्न होने भी नहीं देता। दादाश्री : होने ही नहीं देगा न! पूरा आत्मघात कर देता है न! जो है न, उसी को वापस गिराता रहता है। प्रश्नकर्ता : खूबी यह है कि आपके जो शब्द निकलते हैं, वह 'एक्जेक्ट' 'उसे' अंदर स्पर्श करते हैं, वह रोग उखड़ जाता है। दृष्टि बदल देते हैं, और अंदर 'एक्जेक्ट' क्रियाकारी होता हुआ दिखाई देता है, बहुत वैज्ञानिक लगता है यह सब! दादाश्री : बात पूर्ण वैज्ञानिक होगी, तभी लोगों का निबेड़ा आएगा न, नहीं तो निबेड़ा ही नहीं आएगा न! "मारग साचा मिल गया, छूट गया संदेह।" संदेह छूट गया, सही मार्ग तो मिल गया। रास्ता भूल गए होंगे तो वापस एक मील चलना पड़ेगा और क्या करना पड़ेगा? लेकिन जिसे जाना है उसे मिल आएगा। 'दादा' से पूछना कि 'हम भटक गए हैं या सही रास्ते पर हैं ?' इतना पूछना। 'मेरा ज्ञान कैसा है ?' ऐसा नहीं पूछना। 'भटक गया हूँ या सही रास्ते पर हूँ ?' इतना ही पूछना है। दादा कहें, 'ठीक है रास्ता' तो फिर चलते जाना।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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