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________________ आप्तवाणी - ९ पचास रुपये में मिलते हैं, कोई सौ रुपये में मिलते हैं । आखिर में एक दिन के पाँच सौ रुपये में भी मिलते हैं न ! तैयार ही मिलते हैं, तो फिर अक्ल का उपयोग क्यों करें ? ! आपको समझ में आया न ? ३८० 4 I ये तो बहुत पुण्यशाली लोग हैं तो लोग ऐसा कह देते हैं कि 'अक्ल नहीं है'। यह बहुत अच्छा है । इसे तो इनाम कहते हैं । यह तो लोगों ने ही कीचड़ में गहरे नहीं उतरने दिया । 'एय रुक जा ! भीतर मत उतरना, तू डूब जाएगा ! कीचड़ में पैर फँस जाएँगे !' तब कहा, 'अच्छा!' इस किनारे पर खड़े रहे इसीलिए तो यह 'ज्ञान' पाया ! वर्ना तो जो डूब चुके हैं, उनके चेहरे तो देखो, सभी के ! जैसे एरंडी का तेल पीया हो वैसे हो गए हैं, वे सयाने बनने, नाम कमाने गए थे तो ! प्रश्नकर्ता : लेकिन बाहर वाले हर बात में मूर्ख ठहरा देते हैं, वहाँ क्या करें ? दादाश्री : हाँ, तो हमें वही बनने की ज़रूरत हैं । हमारे बहुत पुण्य जागे हैं! और वहाँ पर उन लोगों में हमें एकदम हँसी-खुशी से नहीं रहना है, लेकिन दिखावा तो ऐसा ही करना है कि हमें तेरे साथ घुड़दौड़ में आना है, सिर्फ दिखावा ही ! बल्कि अंदर से तो, अगर वहाँ चले जाएँ न, तो भी हार जाना चाहिए ! तब फिर उन्हें मन में ऐसा लगेगा कि 'हम जीत गए हैं'। हमने तो सामने से कितने ही लोगों को ऐसा कह दिया था कि, 'भाई, हममें बरकत नहीं है।' वह सब से अच्छा रास्ता है। बाकी तो यह सब घुड़दौड़ है ! 'रेस- कोर्स' है ! वहाँ हम किसके साथ दौड़ें ? 'नहीं है हममें कोई बरकत, नहीं है चलने की शक्ति, ' वहाँ किसके साथ दौड़ेंगे? तब भी लोग कहेंगे, 'आपकी कहाँ अभी बहुत उम्र हुई है ? ' तब मैंने कहा ‘लेकिन, अधिक उम्र वाले के साथ भी मुझसे नहीं दौड़ा जाता। हमें दूसरा कुछ तो आता नहीं है।' इस बेवकूफ की अक्ल का क्या करना है ? जो अक्ल, किराए पर मिलती है ! देखो न, 'एक्सपर्ट' तो, जहाँ से ज़रूरत हो, वहाँ से किराए पर मिल जाते हैं। कहाँ के 'एक्सपर्ट' ? तब कहते हैं, 'इन्कम टैक्स' के । वे
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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