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________________ [६] लघुतम : गुरुतम कि, ‘यह तो हम ऐसा जानते ही नहीं थे । आपने कहा तब हमें पता चला और आप तो सबकुछ पता लगाकर बैठे हुए हो।' ऐसा कहकर उसे वापस निकाल देते हैं। हाँ, वर्ना अगर उसे हरा देंगे तो उसे नींद नहीं आएगी और हमें दोष लगेगा । तो उसके बजाय तो, कई लोगों से हम ऐसा कहते हैं ‘सो जा न ! तू हमसे जीत गया तो घर जाकर रेशमी चादर बिछाकर सो जा ।' उसके मन में ऐसा होता है कि 'चलो न थोड़ा जीत जाऊँ।' इसलिए हम कहते हैं कि 'तू जीत गया, ले!' और यदि उसे हरा देंगे न, तो उसे नींद नहीं आएगी और मुझे तो हारकर भी नींद आएगी । जितना हारता हूँ, उतनी ज़्यादा नींद आती है। ३७९ हारना ढूँढ निकालो! यह नई खोज है हमारी, 'जीता हुआ इंसान कभी भी हार सकता है, लेकिन जो हारकर बैठा है न, वह कभी भी नहीं हार सकता।' जीतने के लिए निकला न, तभी से फेल कहा जाता है। ये लड़ाईयाँ नहीं हैं। शास्त्र में जीतने निकला या किसी में भी जीतने निकला, लेकिन जीतने निकला इसलिए तू फेल ! यह ज्ञान स्पर्धा रहित ज्ञान है। यह ज्ञान स्पर्धावाला नहीं है इसीलिए तो दुर्लभ, दुर्लभ, दुर्लभ कहा है न! 'ज्ञानीपुरुष' मिलने दुर्लभ हैं! एक में एक्सपर्ट, लेकिन और सभी में... हम तो 'अबुध' हैं ऐसा पुस्तक में छपा भी है। मैं लोगों से कहता हूँ कि 'हम तो अबुध हैं !' तब लोग कहते हैं, 'ऐसा मत कहिए, मत कहिए !' अरे भाई, तू भी बोल । तू भी अबुध बन, नहीं तो मारा जाएगा ! लोग तो तेरे पैर तोड़ डालेंगे ! इसलिए हमें अक्लमंद बनने की बात ही नहीं करनी है इसीलिए तो हमने अबुध का कारखाना ढूँढ निकाला न ! देखो न, कैसा ढूँढ निकाला ! अरे, हमें जब व्यवहार में समझ नहीं आएगा तो वकील को ढूँढ निकालेंगे कि, 'ले रुपए, और कुछ करके दे । यह झगड़ा कर रहा है उसका हल ला दे।' कहेंगे, और फिर भला हम कहाँ अक्ल का उपयोग करें ! ऐसे अक्लमंद लोग तो मिलते हैं न ! कोई पच्चीस रुपये में मिलते हैं, कोई
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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