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________________ ३७० आप्तवाणी-९ हम दौड़ने देते हैं। 'खूब दौड़ो, दौड़ो, दौड़ो!' फिर हीरा बा भी कहते हैं कि, 'आप भोले हैं।' मैंने कहा, 'हाँ, ठीक है।' __ ये लोग स्पर्धा करते हैं न, इसलिए दुःख आते हैं। ये तो 'रेसकोर्स' में उतरते हैं। यह जो 'रेस-कोर्स' चल रहा है उसे देखता रह, कि कौन सा घोड़ा पहले नंबर पर आता है ?! उसे देखता रहे तो देखने वाले को कोई दःख नहीं होता। जो 'रेस-कोर्स' में उतरते हैं उन्हें दुःख होता है। इसलिए 'रेस-कोर्स' में उतरने जैसा नहीं है। टीका-टिप्पणी, खुद का ही बिगाड़ती है और दूसरा, किसी की भी टीका-टिप्पणी (टीका) करने जैसा नहीं है। टीका करने वाले का खुद का ही बिगड़ता है। कोई भी व्यक्ति कुछ करे, उसमें टीका करनेवाला पहले तो खुद के ही कपड़े बिगाड़ता है। और अगर उससे भी अधिक गहरे उतरे तो शरीर बिगाड़ता है। और अगर उससे भी अधिक गहरा उतरे तो हृदय बिगाड़ता है। इसलिए टीका तो खुद का बिगाड़ने का साधन है। उसमें नहीं उतरना चाहिए। उसे जानने के लिए जानना। बाकी, इसमें उतरना नहीं चाहिए। यह जीवन टीका-टिप्पणी करने के लिए नहीं मिला है और कोई अपनी टीका करे तो नोंध लेने जैसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : टीका करने वाले जीव को अपने काम में कुछ रुचि होगी तभी टीका करेगा। दादाश्री : टीका-टिप्पणी करना तो अहंकार का मूल गुण है। वह स्पर्धा का गुण है, इसलिए टीका तो रहेगी ही। और स्पर्धा के बिना संसार में रहा नहीं जा सकता। स्पर्धा जाए तो छुटकारा हो जाए। उपवास करते हैं, वह सब भी स्पर्धा के गुण से शुरू होते हैं। 'उसने पंद्रह किए तो मैं तीस करूँगा।' इसके बावजूद भी यह टीका, करने जैसी चीज़ नहीं है। टीका करने से पहले तो अपने कपड़े बिगड़ते हैं, और दूसरी टीका से देह बिगड़ती है और तीसरी टीका से हृदय बिगड़ता है। बस, इतना ही! इसलिए किसी की भी बात में गहरे मत उतरो क्योंकि वह तो खुद,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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