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________________ [६] लघुतम : गुरुतम ३६९ दादाश्री : क्योंकि वहाँ 'रेस-कोर्स' में पड़ जाते है न! इतने सारे घोड़े दौड़ते हैं, उनके साथ वह भी दौड़ता है। 'अरे, तू बीमार है, बैठा रह न चुपचाप!' जबकि वे तो 'स्ट्रोंग' घोड़े हैं। और उसमें भी इन सब घोडों में पहले नंबर वाले को ही इनाम मिलेगा और बाकी सब तो हाँफ-हाँफकर मर जाएँगे। अतः इस स्पर्धा में तो कोई मूर्ख भी नहीं पड़ता। हाँ, दो सौ-पाँच सौ घोड़ों को इनाम दे रहे हों तो अपना भी नंबर लग जाएगा ऐसा मान सकते हैं लेकिन अरे, पहला नंबर तो लगनेवाला है नहीं। तो फिर किसलिए बेकार यों ही इस 'रेस-कोर्स' में पड़ा है? सो जा न, घर जाकर। इस 'रेस-कोर्स' में कौन उतरे? इनके 'रेस-कोर्स' में कहाँ उतरें? कोई घोड़ा कितना जोरदार होता है! कोई चने खाता है, कोई घास खाता है! मैं इस संसार के 'रेस-कोर्स' में पड़ा ही नहीं, इसलिए मुझे 'भगवान' मिल गए! ___ और इनाम तो पहले नंबर वाले को ही! बाकी सब तो भटक मरते हैं। हाँफ-हाँफकर मर जाएँ, तब भी कुछ नहीं। क्या ऐसे न्याय वाले जगत् में 'रेस-कोर्स' में पड़ना चाहिए? आपको कैसा लगता है? प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : और इंसान का स्वभाव स्पर्धावाला ही होता है। लोगों में स्पर्धा रहती है न? प्रश्नकर्ता : रहती है न! वे तो उत्तेजित करते हैं। दादाश्री : हर एक क्षेत्र में स्पर्धा रहती ही है। अरे, घर में भी यदि तीसरा व्यक्ति आ जाए, और वह दलीलबाजी करे ऐसा हो तो पति-पत्नी में भी स्पर्धा चलती है फिर। पत्नी ऐसा बोले, तब ये भाई कहेंगे, 'बैठ, तू तो ऐसा करती है लेकिन मैं तो ऐसा कर डालूँ, वैसा हूँ।' अरे, दोनों घोड़े दौड़े! कौन इनाम देगा तुम्हें ? इसलिए हम तो कह देते हैं कि 'हीरा बा को जैसा आता है, वैसा हमें नहीं आता।' यानी कि
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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