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________________ २७४ आप्तवाणी-९ दादाश्री : लोग किस तरह से दिन निकालते हैं, वही देखो न! पढ़े-लिखे लोग परेशानियों को कम कर देते हैं। हो सके वहाँ तक दुःख और परेशानी को कम कर देते हैं और उसे पूरी तरह से खत्म कर देते हैं लेकिन जब इसमें खुद का नहीं चलता तब फिर उलझ जाते हैं। पढ़े-लिखे लोगों में सूझ-बूझ और विवेक-बुद्धि नहीं होती इसलिए वे उलझन में पड़ जाते हैं। शिक्षण होता है, लेकिन विवेक-बुद्धि नहीं है न! विवेक-बुद्धि, वह अलग चीज़ है। मुझे पढ़ना-लिखना नहीं आया, लेकिन सूझ-बूझ और विवेक-बुद्धि बहुत अच्छी है ! मैट्रिक 'फेल' हुआ लेकिन विवेक-बुद्धि व सूझ-बूझ से काम निकालना बहुत अच्छी तरह से आता है। जहाँ प्रतिकार, वहाँ प्रतिक्रमण प्रश्नकर्ता : अपमान होने पर अच्छा नहीं लगता तो वहाँ क्या करना चाहिए? दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन जब अपमान हो, तब हमला नहीं करते हो न? प्रश्नकर्ता : वाणी ऐसी निकल जाती है, वाणी से 'अटैक' हो जाता है। दादाश्री : लेकिन आपका भाव वैसा नहीं है न? प्रश्नकर्ता : बिल्कुल नहीं। ऐसी वाणी निकलने के बाद खुद को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता लेकिन ऐसी वाणी निकली वह असंयम तो हो गया न? उससे लाभ नहीं होता न, कुछ भी! दादाश्री : लेकिन 'फर्स्ट' संयम अर्थात् अंदर ऐसा रहना चाहिए कि 'नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा क्यों हो रहा है?' वह पहला संयम। लेकिन यह संयम शुरू हो जाना चाहिए। वही सच्चा संयम कहलाता है। 'लास्ट' संयम फिर धीरे-धीरे आएगा। प्रश्नकर्ता : कभी कोई यों अपमान कर दे तो वहाँ मन से प्रतिकार होता रहता है, वाणी से प्रतिकार शायद न भी हो।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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