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________________ २७२ आप्तवाणी-९ अपमान करनेवाला, उपकारी प्रश्नकर्ता : अब तो ये मान-अपमान बहुत चुभते हैं, इनसे मुक्त कैसे हो सकते हैं? दादाश्री : अपमान चुभता है या मान चुभता है ? प्रश्नकर्ता : यों तो अपमान। दादाश्री : अरे, मान भी बहुत चुभता है। यदि मान भी ज़रा ज़्यादा दे न तो इंसान खड़ा हो जाता है। मान बहुत दे न, तो वहाँ से ऊबकर भाग जाता है इंसान। यदि हररोज़ पूरे दिन मान देते रहें न, तो इंसान ऊबकर वहाँ से भाग जाता है। अपमान तो घड़ीभर भी अच्छा नहीं लगता। मान तो कुछ समय तक अच्छा भी लगता है। इसके बावजूद इंसान अपमान सहन कर सकता है, मान सहन नहीं कर सकता। हाँ, मान सहन करना तो सीसा पीने के बराबर है। बेटे की शादी हो और, वह नीचे झुककर पिता के पैर छुए तब पिता खड़ा हो जाता है, उठ जाता है। 'अरे, तू क्यों हिल रहा है?' तब वह कहता है, 'सहन नहीं होता।' प्रश्नकर्ता : इसके बावजूद भी अपमान अच्छा न लगे तो उसे क्या कहा जाएगा? दादाश्री : अपमान अच्छा न लगे, वह तो बहुत ही गलत कहा जाएगा। अपमान तो अच्छा नहीं लगता और वह तो, हम सभी को अपमान अच्छा नहीं लगता। वह अच्छा लगे ऐसी शक्ति लोगों में उत्पन्न नहीं हुई है। उन्हें तो अपमान करनेवाला किराए पर रखना चाहिए लेकिन कोई किराए पर रखता ही नहीं है न! लेकिन किराएवाला सचमुच का अपमान नहीं करेगा न! और लोग तो, जब कोई सचमुच में अपमान करे, तब दुःखी हो जाते हैं। जो सचमुच में अपमान करे, उसे उपकारी मानना लेकिन तब इंसान दुःखी हो जाता है। वास्तव में जब कोई अपमान करे तब दुःखी नहीं हो जाना चाहिए। अतः जब कोई अपमान करने वाले मिल जाएँ न, तो बहुत उपकारी मानकर 'यह साथ ही रहे तो बहुत अच्छा' ऐसा तय करना।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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