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________________ [५] मान : गर्व : गारवता २७१ ___मान में कपट : मान की विकृति प्रश्नकर्ता : इस मान को चखे, तो फिर वह जागृति को 'डाउन' नहीं करता, दादा? दादाश्री : जागृति कम ही हो जाती है न! अब जहाँ मान में कपट हो वहाँ पर जागृति उत्पन्न नहीं होती। जहाँ मान में कपट हो वहाँ मान दिखाई ही नहीं देता। प्रश्नकर्ता : मान सहज रूप से मिले तो चखने में आपत्ति नहीं है लेकिन वह फिर विकृत होने लगे और उसकी इच्छा होती है। ऐसा होता है न, फिर? दादाश्री : ऐसा सब होता है, लेकिन वैसी इच्छा तो होनी ही नहीं चाहिए और इच्छा हो तो नुकसानदायक है। प्रश्नकर्ता : तो फिर मान की वह विकृति कौन-कौन सी और किस हद तक की हो सकती है? दादाश्री : बहुत तरह-तरह की विकृतियाँ होती हैं। मान की विकृतियाँ तो बहुत सी हैं और वह मान की विकृति ही इंसान को पीछे धकेल देती है। यानी मान चखने में हर्ज नहीं है। कोई आपसे कहे 'आइए, पधारिए साहब, ऐसा है, वैसा है।' आप वह मान आराम से चखो-करो, लेकिन उसका आपको कैफ नहीं चढ़ जाना चाहिए। हाँ, चखो आराम से, और अंदर संतोष होगा लेकिन यदि कैफ चढ़ा तो वह हो जाएगा कुरूप! बाकी, जब तक मान है तब तक इंसान कुरूप दिखता है और कुरूप बना इसलिए किसी को आकर्षण नहीं होता। कुरूप दिखता है या नहीं दिखता? चेहरे पर रूप होता है, फिर भी कुरूप दिखता है। मान किससे टिका हुआ है ? खुद सामने वाले को हल्का मानता है इसलिए मान टिका हुआ है। इसलिए उसे हल्का मत मानना और 'यह तो मेरा ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) है' ऐसा कहना, तो मान चला जाएगा।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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