SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ आप्तवाणी-९ अब नोबल किसे कहें ? जो जाते हुए भी लुटता है और आते हुए भी लुटता है। यानी लेते समय खुद लुटता है, सामनेवाला उसे ठग लेता है और देते समय भी खुद ठगा जाता है, ऐसा सोचकर कि 'उस बेचारे को दुःख होगा, इसलिए जितना देना है उससे ज़रा ज़्यादा दे दो।' यानी दोनों तरफ से लुटता है। उसे खानदानी कहते हैं, वह नोबल कहलाता और यह खानदानियत का अहंकार है, उसमें परेशानी नहीं। वह अहंकार खानदानियत की हिफाज़त करता है। हाँ, वर्ना यदि अहंकार नहीं हो तो खानदानियत गायब हो जाएगी, दिवाला निकाल देगा। हमारे बड़े भाई यहाँ बड़ौदा में रहते थे। जब मैं बड़ौदा आऊँ तब आसपासवाला कोई कहता, 'हमारा बनियान वगैरह ले आना, हमारे लिए यह ले आना, हमारे लिए दो चड्डियाँ लेते आना।' सभी मित्र कहते हैं न? और मेरा स्वभाव कैसा? जिस दुकान के सामने खड़ा हुआ और पूछा तो वहीं से लेना। फिर कम-ज्यादा हो तो भी चला लेता था। उसे दुःख नहीं हो इसलिए उसी के यहाँ से ले लेता। मैं अपना स्वभाव समझता था और जो लोग चीजें मँगवाते थे, वे लोग सात जगह पर पूछ-पूछकर, सभी का अपमान कर-करके लाते थे। मैं जानता था कि ये लोग ऐसे हैं कि मुझसे दो आने कम में लाएँ और मुझसे मँगवाया है तो मेरे दो आने ज़्यादा खर्च होने वाले हैं। यानी मैं दो आने वे और एक आना बढ़ाकर, ऐसा करके तीन आने कम करके उन्हें कीमत बताता था। बारह आने दिए होते थे तो उनसे ऐसा कहता था कि 'मैंने नौ आने दिए हैं' ताकि वे ऐसा नहीं कहें कि, 'मुझसे कमिशन निकाल ले गए। मैं तो दस आने का लाता था और आपको मुझे बारह आने देने पड़े। मतलब बीच में आपने दो आने ले लिए।' लोग मुझ पर इस तरह कमिशन का आरोप न लगाएँ इसलिए तीन आने कम लेता था, तीन आने कम कर देता था। हाँ, वर्ना कहते, 'दो आने कमिशन निकाल लिया!' ले! "अरे, नहीं निकाला 'कमिशन'। मैं कमिशन निकालना सीखा ही नहीं।" हमने नहीं लिया कमिशन, पूरी जिंदगी में नहीं किया ऐसा।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy