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________________ [५] मान : गर्व : गारवता २६५ खुद अपने आपको न जाने क्या मान बैठा था। कुछ भी नहीं था फिर भी, लेकिन मन में मान बैठा था! एक स्टेट हो तो समझो ठीक है कि बड़ौदा स्टेट थी। यह तो कुछ भी नहीं था न! बिना स्टेट का आडंबर। आडंबरी लोग! और कपड़े तो ऐसे पहनता था जैसे बहुत बड़ा, गायकवाड़ सरकार का रिश्तेदार हो न! अब इससे क्या हासिल करना था? लेकिन बाद में फिर अच्छे से राह पर आ गया। प्रश्नकर्ता : उस अहंकार से जुदा रहकर बर्तते थे? ऐसा कुछ था? दादाश्री : नहीं। जुदा नहीं रहे, तभी तो यह दशा हुई थी न! तभी नींद नहीं आती थी न! जुदा रहे होते तो बैठा नहीं देते उसे? लेकिन सिर्फ अहंकार को ही पोषण मिलता था। कपट नहीं, ममता तो बिल्कुल नहीं। ममता थी ज़रूर, लेकिन बहुत कम। अहंकार की ही ममता, पैसों की ममता नहीं। यानी आता कुछ भी नहीं था और अहंकार बेहद था। सिर्फ इतना ही आता था... किसी को 'हेल्प' करना! खानदान का अहंकार मुझ में मान बहुत था। जैसे न जाने मैं कितना बड़ा! क्योंकि क्षत्रिय कुल में जन्म हुआ था। पटेल अर्थात् क्षत्रिय। इसलिए वह दहेज देते हैं न! तो जन्म लेते ही बड़ी बातें करते कि इतना चेक आएगा और इतना आएगा। बड़े चेकवाला दूल्हा आया! और फिर वैसे गुण भी थे। वे दहेज यों ही नहीं दे देते थे। ऐसे गुण हों, कुल के गुण हों, उसी वजह से देते थे और सिर्फ कुल से ही नहीं चलता था, जाति और कुल दोनों होने चाहिए, तब पैसे देते थे। वर्ना देते क्या? सिर्फ 'कुलवान' कैसा होता है ? 'नोबल' होता है। 'नोबल' होता है इसलिए कुलवान के कुछ अच्छे गुण होते हैं। वह किसी को धोखा नहीं देता, कोई लुच्चाई नहीं करता। कोई कुलवान और जातिवान, दोनों हो तब दहेज के लायक माना जाता था। जातिवान का मतलब क्या? नोबल भी होता है और यों किसी को ठगता भी नहीं। ठगने का कोई भी गुण उसमें नहीं होता।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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