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________________ २६२ आप्तवाणी-९ ये हमें मान दे रही हैं ? ऐसा है यह सब तो। अपने मन में मान लेते हैं कि ये लोग सब मान सहित देख रहे हैं, मन में मान लेते हैं ! वे तो सभी अपने-अपने दुःख में है बेचारे, अपनी-अपनी चिंता में हैं। वे क्या आपके लिए पड़े हैं ? फालतू हैं ? हर कोई अपनी-अपनी चिंता में घूम रहा है ! वह सब मान के लिए ही मैंने लोगों से कहा था, 'आपका काम करवा जाना मुझसे, जो कुछ भी हो, वह। सलाह मशवरा, और कुछ भी हो! मेरे पास पैसे होंगे तो वे भी दूंगा, लेकिन आपका काम करूँगा। आपको मेरा काम नहीं करना है।' क्योंकि अगर आपको मेरा काम करने को मना करूँ न, तो आपको मेरी तरफ से भय नहीं रहेगा। रात को कभी सिनेमा गए हो और वहाँ से आपके यहाँ आएँ, तब आप सोचते हो, 'ये कभी भी नहीं आते, और ऐसे आ गए हैं ! ज़रूर इन्हें कुछ चाहिए!' तो यह तो बल्कि आप 'सती' पर दृष्टि बिगाड़ रहे हो। हमें कुछ चाहिए नहीं और वे दृष्टि बिगाड़ें, अंदर डर रखें कि 'कुछ माँगेगा, माँगेगा।' तब मैंने सब से कह दिया कि 'ये हाथ फैलाने के लिए नहीं हैं इसलिए आपको जो भी ज़रूरत हो, वह मुझे बताना।' इससे सब निर्भय हो गए। रोज़ चार-चार गाड़ियाँ घर के आगे पड़ी रहती थीं। मामा की पोल में पंद्रह रुपये का किराया, संस्कारी पोल (मुहल्ला)। आज से पैंतालीस साल पहले कहाँ लोग बंगले में रहते थे? मामा की पोल बहुत उत्तम मानी जाती थी। उन दिनों हम मामा की पोल में रहते थे और पंद्रह रुपये किराया। उन दिनों लोग सात रुपये के किराए में पड़े रहते थे, हम पंद्रह रुपये में। यों बड़े कॉन्ट्रैक्टर कहलाते थे। अब वहाँ मामा की पोल में बंगले में रहने वाले आते थे मोटर लेकर क्योंकि परेशानी में फँसे हुए होते थे, वे यहाँ पर आते थे। तो उल्टा-सीधा करके आए होते थे न, तब भी उन्हें 'पिछले दरवाज़े' से निकाल देता था। 'पिछला दरवाज़ा' दिखाता कि यहाँ से निकल जाओ। अब गुनाह उसने किया और 'पिछले दरवाज़े' से मैं छुड़वा देता था। यानी गुनाह मेरे सिर पर लिया। किसलिए? मान खाने के लिए! 'पिछले दरवाजे' से निकाल देना, क्या वह गुनाह
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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