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________________ २५४ आप्तवाणी - ९ प्रश्नकर्ता : यह लालच तो भयंकर रोग है ! दादाश्री : वह बहुत पुराना रोग है तो वे क्यों मेरी बात मानने लगेंगे ! तब फिर पेड़ पर आम हिला कि अंदर एकदम से पूरा हिल जाता है! पेड़ पर आम हिलना चाहिए तो अंदर भी आम हिलने लगता है ! प्रश्नकर्ता : कुछ लोग ऐसे होते हैं कि किसी भी प्रकार से उन्हें खुद को सब के सामने लाना होता है, सौ लोगों के बीच में । दादाश्री : वह तो पाँच-दस लोगों का गुरु बनने की आदत है उसे। शिष्य होना तो आता नहीं और गुरु बन बैठना है ! इसलिए फिर कोई ग्राहक हाथ में आया कि वहाँ पर बैठ जाता है । लेकिन वह भी लालच है इसलिए, सबकुछ भोगने के लिए। कोई चीज़ भोगनी नहीं है, ऐसा नहीं है। एक जन्म, ज्ञानी की अधीनता में इसलिए हम क्या कहते हैं कि इस सत्संग की एकता मत छोड़ना । नहीं तो अलग जाने की कोशिश करता है । लेकिन कुछ भी करना नहीं आएगा। लोग धक्का मारकर निकाल देंगे ! ऐसा नहीं चलेगा। कहीं चलता होगा ? बनावटी बाघ कितने दिन तक चलेगा ? बाघ की खाल पहनकर घूमेगा तो चलेगा क्या? वह पौधा उगेगा ही नहीं इसलिए कह दिया है, वह पौधा उगना ही नहीं चाहिए अपने में। हमें तो यह जन्म अधीनता में ही बिताना है । अधीनता मत छोड़ना, क्योंकि मंडली बनाई जाए तो लोग इकट्ठे हो जाएँगे लेकिन उसमें खुद का अहित होगा और लोगों का भी अहित होगा । अपने यहाँ एक व्यक्ति अलग दुकान लगाकर बैठा भी था । दोचार जगहों पर ‘दादा' के नाम पर सभा कर आया। बड़ी-बड़ी सभाएँ इकट्ठी कीं और सबकुछ करके आया लेकिन मैंने कहा, 'अरे, मार खाएगा आखिर में। यह ओढ़ा हुआ कितने दिनों तक चलेगा?' और वापस, ऐसे वापस पलट भी जाता है । यों टेढ़ा नहीं हो जाता, लेकिन लालच घुस जाए तो, वह सोचता है 'मैं कुछ कर आऊँ' । वह फिर ऐसा
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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