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________________ [४] ममता : लालच २२९ प्रश्नकर्ता : लोभ इतना गहरा होता है, क्या इसलिए वह जल्दी नहीं छूटता? दादाश्री : हाँ, वह जल्दी नहीं छूटता। बहुत तेल निकाल देता है। फिर भी लोभी नियमवाला होता है। जबकि लालची में तो नियम ही नहीं होता। लालची में कोई नियम नहीं। वह 'ज्ञानी' की आज्ञा ही नहीं पालता न! पालन करनी हो तब भी पालन नहीं कर सकता। प्रश्नकर्ता : लेकिन 'ज्ञानी' के प्रति बहुत भाव हो, तो उसका क्या? दादाश्री : भाव होता है, तब भी कुछ भला नहीं होता न! यानी लोभी छूट सकता है, लेकिन लालची नहीं छूट सकता। इस 'ज्ञान' के बाद कुछ लोभ भी जीवित रहता है और लालच भी जीवंत रहता है लेकिन लालची की 'सेफसाइड' नहीं है। लोभी की 'सेफसाइड' हो जाती है, लेकिन लालची की 'सेफसाइड' नहीं हो पाती, मैंने ऐसा बहुत जगह पर देखा है।। बड़ा लोभी हो न, तो वह 'ज्ञानी' की आज्ञा का पालन नहीं कर सकता। वह भी शायद कभी 'ज्ञानी' की आज्ञा का पालन कर सके, लेकिन लालची, वह 'ज्ञानी' की आज्ञा का पालन नहीं कर सकता। ये सब डिफरेन्स हैं बिट्वीन लोभी और लालची ! लालची आत्मघाती व्यक्ति होता है। खुद का घात करता है, निरंतर खुद का आत्मघात कर रहा है ! जहाँ-तहाँ से सुख का ही लालच प्रश्नकर्ता : लालच में और क्या-क्या आता है? दादाश्री : लालच में सभी कुछ आ जाता है न! प्रश्नकर्ता : लेकिन वह किस प्रकार का लालच होता है ? दादाश्री : सभी प्रकार का लालच! कुछ भी बाकी ही नहीं रहता प्रश्नकर्ता : उदाहरण देकर समझाइए न।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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