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________________ [४] ममता : लालच २१५ प्रश्नकर्ता : लेकिन यह संग्रहालय है ही ऐसा कि सभी प्रकार का लालच करवाता है। दादाश्री : संग्रहालय ऐसा ही होता है लेकिन साथ में कुछ भी ले नहीं जाना है, ऐसी शर्त है। तब फिर क्या है? आपके गाँव में साथ ले जाने का रिवाज़ है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तो फिर किसलिए यह 'हाय, हाय' है सब? देखनाजानना! आम आए तो क्या फेंक देने हैं? हाफूस के आम आएँ तो चैन से खाओ, पंखा चलाकर। एयर कंडीशनर चलाओ हर्ज नहीं, लेकिन साथ में कुछ ले नहीं जाना है, और 'हाय, हाय' नहीं करनी है। यानी पूरा जगत् संग्रहालय है इसमें आराम से खाओ-पीओ। टेस्टफुली खाओ लेकिन इस तरह से नहीं भोगते। सिर पर तलवार लटकी हुई हो, और नीचे भोजन करना! अरे, रहने दे तेरा भोजन! जाने दे इसे! वर्ना तलवार का भय लग रहा हो तो उसे कहकर बैठ कि 'जब गिरना हो तब गिरना। यहाँ भोजन करने बैठे है।' वर्ना यों एक-एक व्यक्ति की ऐसी दशा है कि सिर पर तलवार और नीचे भोजन करना। और मुँह पर तो एरंडी का तेल ही चुपड़ा हुआ होता है। एरंडी का तेल चुपड़ा हुआ देखाई देता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : यानी कि सब खाना, पीना। जो आपको अनुकूल आए वह खाना। स्त्रियों में कोई हर्ज नहीं है। विवाह मत करना और विवाह करो तो भी व्यवहार से विवाह करना। निश्चय से विवाह मत करना। यह लोग तो निश्चय से विवाह कर लेते हैं। निश्चय से विवाह नहीं करते? प्रश्नकर्ता : हाँ, करते हैं न! दादाश्री : अब ये लोग विवाह करते हैं और आप भी विवाह करते हो लेकिन वे लोग 'मेरी, मेरी,' करते रहते हैं जबकि आप फाइल का निकाल करते हो। 'ज्ञान' लिया है इसलिए। लेकिन क्या 'मेरी, मेरी' कही हुई कोई भी चीज़ साथ में ले जाई जा सकती है? कोई लेकर गया है क्या?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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