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________________ १९४ आप्तवाणी - ९ उसी को पकडूंगा कि 'तू मुझसे ऐसा कहने आया ही क्यों ? वह मुझे बता! ‘तू कहने आया इसलिए तू ही गुनहगार है ।' ऐसे लोग, यदि कहने आएँ न तो उन्हें तो सुनना ही नहीं चाहिए । बिना बात के अपने पूछे बगैर जो कुछ भी कहा जाता है, उस पर तो हमें ध्यान ही नहीं देना चाहिए। ऐसे लोगों की तो मैं सुनता ही नहीं हूँ। उन्हें घालमेलिया कहते हैं। घालमेल करने वाले (प्रपंची) को तो पास ही नहीं आने देना चाहिए। मेरे पास तो किसी व्यक्ति ने कोई प्रपंच किया ही नहीं है । और शायद कभी कोई ऐसी बात मुझसे करने आ जाए तो उससे ऐसी बात कही भी नहीं जा सकेगी। वास्तव में धर्म के संबंध में किसी की भी बात सुननी ही नहीं चाहिए । मैं तो किसी की संसार से संबंधित बात भी नहीं सुनता हूँ न ! कोई कहे कि, 'हीरा बा ऐसा कह रहे थे, ' तो मैं कहूँगा कि, 'तुझे मुझसे ऐसा क्यों कहना पड़ा ? मुझे यह बता, कि इससे तुझे क्या फायदा ? ' I अपने सत्संग में यदि घालमेलिया हों, उन्हें तो ढूँढ निकालना चाहिए, और उनसे सभी को सावधान कर देना चाहिए। हम लोगों को उनके प्रति कोई राग-द्वेष नहीं है, लेकिन सब को सावधान करने के लिए करना पड़ेगा। हमें कोई कहने ही क्यों आए ? ! उसमें भी कुछ लोग तो ऐसे होते हैं, कि हितैषी बनकर बात करते हैं। वह किसी के बारे में बात करे तो हमें उसकी सुननी ही नहीं चाहिए। आपको ऐसी बातें करने वाले को पकड़ना आना चाहिए कि, 'हमें क्यों कहने आया है ? तुझे क्या दलाली मिल रही है ? तुझे क्या फायदा होता है कि तू यह सब मुझे बताने आया है ? ' वास्तव में किसी की भी ऐसी कुछ सुननी ही नहीं चाहिए लेकिन आजकल लोगों के मन कच्चे पड़ जाते हैं। अगर किसी की ऐसी तोड़फोड़ वाली बात हो, 'सबोटाज़' की बात हो तो सुननी ही नहीं चाहिए क्योंकि यदि हम उसकी बात सुनेंगे तो अपना मन भी उसके लिए बिगड़ेगा, और उसका असर वापस सामने वाले पर पड़ेगा। लेकिन लोगों में समझने की क्षमता नहीं है । शायद कभी कोई व्यक्ति 'इनडायरेक्ट' बात कर रहा हो, तो उसे वह 'डायरेक्ट' खुद पर ले लेता है !
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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