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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग १७५ से खुल जाए तो समझना कि अपने पास कॉमनसेन्स है। वर्ना सभी बिना कॉमनसेन्स की बातें करते हैं, उसमें उनकी खुद की समझ बिल्कुल भी नहीं है। कॉमनसेन्स वाला इंसान देखा है? अभी तक मैंने कोई कॉमनसेन्स वाला इंसान देखा ही नहीं है। तो बड़े से बड़े 'कलेक्टर' मुझसे पूछते हैं कि, 'आपने किसी में कॉमनसेन्स देखा ही नहीं है ?' तब मुझे कहना पड़ता है कि, 'कॉमनसेन्स' कहाँ से लाएँगे?' पत्नी से झगड़ा तो होता है, फिर तु 'कॉमनसेन्स' कहाँ से लेकर आया? 'कॉमनसेन्स' वाले का पत्नी के साथ झगड़ा होता होगा? जिसके साथ रहना है, जिसके साथ खाना है, जिसके साथ पीना है, जिसके साथ टेबल पर भोजन करने बैठना है, उसके साथ कहीं झगड़ा किया जाता होगा? वह क्या 'कॉमनसेन्स' कहलाएगा? ऐसा कॉमनसेन्स कहाँ से ले आए? यह तो पूरा जगत् मन में बेकार की दंभ लेकर घूमता रहता है कि 'मैं कुछ जानता हूँ!' अरे, क्या जाना है तूने, कॉमनसेन्स तो जाना नहीं है अभी तक, फिर और क्या जाना? यह तो कर्म के उदय से चलता है। जिससे परी दनिया डर जाती है, वह पत्नी के साथ किच-किच किए बगैर नहीं रहता है न! अरे, पत्नी के साथ क्यों किच-किच करता है ? बारह सालों में दो-चार बार तो किच-किच करता ही होगा न? प्रश्नकर्ता : अरे, रोज़ किच-किच होती है! दादाश्री : रोज़?! तब तो उसे इंसान कहेंगे ही कैसे? और फिर कहते हैं, 'मुझमें सेन्स है।' अरे, लेकिन 'सेन्स' कहाँ था? बेकार ही किसलिए शोर मचाता रहता है ?! 'सेन्स' होता तो पत्नी के साथ झंझट क्यों होती? पत्नी से मतभेद हो जाता है, तब हम नहीं समझ जाएँ कि 'सेन्स' कुछ कम होगा। प्रश्नकर्ता : दोनों में से किसमें कम है, वह कैसे पता चलेगा? दादाश्री : वह तो पता चलता है न, कि दोनों में से कौन पहले मतभेद डालता है ? यानी 'सेन्स' तो चाहिए न!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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