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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १७३ 'ज्ञानी' का सर्वांग दर्शन यह नोंध लेना बहुत अलग चीज़ है । यह जो मैं कहता हूँ वह बात ऐसे मेरी समझ में आ जाती है, लेकिन उसे आपको दिखाना ज़रा मुश्किल लगता है। मैं भी कुछ लोगों से कहता ज़रूर हूँ कि नोंध मत रखना, और वे फिर समझ भी जाते हैं कि 'इसकी नोंध रखी इसलिए गड़बड़ हुई।' हम कोई भी नोंध नहीं रखते। ये सारी अवस्थाएँ खड़ी होती हैं, लेकिन नोंध नहीं रखते । प्रश्नकर्ता : आप क्या देखते हैं उस समय ? दादाश्री : हम ‘होल फोटोग्राफी' लेते हैं। 'यह अकेला ही दौड़ रहा था,' ऐसी नोंध नहीं रखते। हैं। प्रश्नकर्ता : वह 'होल फोटोग्राफी' में वह दौड़ ही रहा होता है न ? दादाश्री : वैसा अंदर रहता ही है, लेकिन 'होल फोटोग्राफी' लेते वीतरागता की राह पर .... अब अगर नोंध नहीं करे तो जगत् में वीतराग बन जाएगा। जो नोंध नहीं करे वही वीतराग कहलाता है ! तो हम ऐसा नहीं कहते कि 'तू संपूर्ण नोंध मत करना, ' लेकिन थोड़ी बहुत कम करेगा, तब भी बहुत हो गया, तब फिर अपने को ऐसा लगेगा कि वीतराग हो गया लगता है। उस पर से हम ऐसा मानते हैं कि कुछ वीतराग दशा लग रही है । फिर भी वास्तव में ऐसा नहीं बोल सकते कि 'वीतराग है'। अब ये बातें सुनते रहने से सब अपने आप ही छूट जाएगा। इसके लिए कोई क्रिया नहीं करनी हैं, न ही दो उपवास वगैरह करने हैं। बात को सिर्फ समझने की ही ज़रूरत है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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